150 रुपये से शुरुआत कर 3600 करोड़ का साम्राज्य बनाने वाले एक गरीब किसान के बेटे का सफ़र

एक भूमिहीन गरीब किसान के घर पैदा हुए 57 वर्षीय अरोकियास्वामी वेलुमनी आज थायरो केअर टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड के चेयरमैन हैं। इस उद्योग की वर्तमान पूँजी लगभग 3600 करोड़ रुपये है। अपने बिज़नेस को चलाने के लिए वेलुमनी प्रथाओं और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग नहीं करते। आज उनके यहाँ लगभग 1000 लोग कार्यरत हैं और सबकी उम्र 25 वर्ष के आसपास है। इतना ही नहीं उन लोगों की सैलरी सलाना 2.70 लाख है। अप्रैल में थायरो केअर भारतीय शेयर बाजार में एक सैलाब लेकर आया जब उसका आईपीओ 73 गुना से ज्यादा ओवर सब्सक्राइब हुआ और कई बड़े पूंजीपतियों को हैरानी में डाल दिया।

आज थायरोकेयर की पूरे देश में 1200 फ्रैंचाइज़ी हैं जिनमें खून और सीरम के सैंपल या तो सीधे रोगियों से इकठ्ठे किये जाते हैं या फिर हॉस्पिटल से। और फिर इन सैम्पल्स को मुम्बई के पूरी तरीके से स्वचालित प्रयोगशाला में परिक्षण के लिए ले जाया जाता है।

वेलुमनी का जन्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर के पास एक छोटे से गांव पेनुरी में हुआ था। वेलुमनी अपने परिवार में सबसे बड़े थे, उनके बाद दो भाई और एक बहन। उनके माता-पिता भूमिहीन किसान थे जो दूसरों की जमीनों पर काम कर अपनी बुनियादी जरूरतें ही पूरी कर पाते। घर की आर्थिक हालातों को देखते हुए वेलुमनी ने स्कूल के बाद खेतों में काम कर अपने परिवार की मदद करना शुरू कर दिया।

वेलुमनी एक आशावादी विचारधारा के प्रणेता हैं जिन्हें हमेशा ग्लास आधा भरा ही दिखाई पड़ता है। मतलब यह कि वे हर चीज में अच्छा ढूंढने की कोशिश करते हैं। इन सब के बावजूद उन्हें अपनी गरीबी के दिनों का बचपन स्पष्ट रूप से याद है। वे अपने बचपन को याद कर बताते हैं कि जब वे स्कूल जाते थे तब उनके एक हाथ में स्लेट और एक हाथ में खाने की प्लेट होती थी। उनके पास केवल एक ही शर्ट होती थी और जब वह दो तीन दिनों में धुलती थी, तब उन्हें सिर्फ हाफ पैंट में ही स्कूल जाना होता था।

सबसे निचले पायदान से सबसे ऊपर के पायदान तक पहुंचने की शुरुआत 1978 में हुई जब उन्हें जैमिनी कैप्सूल्स टेबलेट बनाने वाली कंपनी में केमिस्ट के तौर पर पहली नौकरी मिली और सिर्फ 150 रुपये का उनका मासिक वेतन था। चार साल बाद यह कंपनी बंद हो गई। नौकरी की जदोजहद में इन्होंने भाबा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिफिक असिस्टेंट की नौकरी के लिए अर्जी दी और 1982 में उन्हें मुम्बई में यह नौकरी मिल गई।

एक व्यक्ति जो गरीबी में जिया हो, उसके लिए एक सरकारी नौकरी मिलना वो भी 880 रूपये की मासिक वेतन के साथ किसी लक्ज़री से कम नहीं थी। मैं अपनी तनख्वाह से अपने परिवार की मदद करने लगा। — वेलुमनी

नौकरी करते हुए उन्होंने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर इन्होंने मुम्बई-यूनिवर्सिटी से थायरॉइड बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट किया। इस नौकरी को 15 साल तक करने के बाद उन्हें ज़िंदगी कुछ ज्यादा ही आराम-तलब लगने लगी और वे कुछ चुनौती भरा काम करना चाह रहे थे। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और तब उनके परिवार के लोग ज़रूर दुखी हुए पर उनकी पत्नी ने उनका सहयोग दिया।

साल 1995 में वेलुमनी ने अपने प्रोविडेंट फण्ड के एक लाख रूपये से 200 स्क्वायर फीट किराये के गेराज में, जो साउथ मुम्बई के बायकुल्ला में है, थायरोकेयर की शुरुआत की। शुरुआत में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हार न मानी। वे खुद ही लैब्स और हॉस्पिटल जाकर ऑर्डर लेते थे। धीरे धीरे सैम्पल की संख्या बढ़ने लगी और इनका बिज़नेस भी बढ़ने लगा। 1998 में उनके यहाँ 15 काम करने वाले थे और उनका टर्न ओवर एक करोड़ था।

थोड़े दिनों बाद थायरोकेयर थायरॉइड टेस्टिंग के अलावा डायबिटीज, आर्थराइटिस जैसे और भी बहुत सारे ब्लड टेस्ट करने लगा। वेलुमनी के पास कंपनी के 65 फीसदी शेयर हैं, 20 फीसदी शेयर सामान्य लोगों के पास और 15 फीसदी शेयर प्राइवेट इक्विटी के पास है।

आज लगभग 50,000 सैम्पल्स प्रतिदिन आते हैं, जिसमें 80 फीसदी टेस्ट थायरॉइड के होते हैं। वर्ष 2015-16 में थायरोकेयर का टर्नओवर विशाल होकर 235 करोड़ के करीब पहुँच गया है।

अपनी ज़िंदगी के इस नायाब सफर के बारे में वेलुमनी का कहना है कि

दस स्लाइसेस के एक पिरामिड में मैं सबसे नीचे का स्लाइस हुआ करता था, पर आज मैं सबसे ऊपर की स्लाइस में हूँ। उस समय मेरे पास पैसे नहीं होते थे पर समय बहुत होता था और आज मेरे पास बहुत धन है पर समय बिलकुल भी नहीं। उस समय मैं बहुत भूखा रहता था और पास में खाने को कुछ नहीं था, पर आज मेरे पास खाने को बहुत कुछ है पर भूख नहीं है।

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