प्रेम, खुशी और सपने से भरा चार साल कब बीत गया, शिवानी को पता तक नहीं चला। इस दौरान घर की ख़ुशहाली में चार चाँद लगाने के लिए भगवान से तोहफे के रुपे में एक बेटी भी मिली। वक़्त के साथ बेटी भी तीन वर्ष की हो गई। एक सैन्य परिवार में पैदा लेने वाली शिवानी वत्स से बेहतर सैन्य अधिकारी के जीवन को और कौन समझ सकता? शिवानी अपने आप को बेहद भाग्यशाली मानतीं हैं कि उनका विवाह एक सैन्य अधिकारी से हुआ। एक सिपाही के तौर पर वह हमेशा अपने पति के साथ साए की तरह खड़ी रहीं तथा एक माँ और शिक्षक के तौर पर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों का भली-भांति निर्वहन किया।
एक अनकही प्रेम कहानी
जब मेजर नवनीत वत्स की मुलाकात एक युवा और सुंदर सेना अधिकारी की बेटी से हुआ तो वो उसके प्यार में पागल हो गये। दबंग शैली वाले जिस घुटने को बड़े से बड़े मुठभेड़ भी कमजोर न कर सका, वह शिवानी के प्यार के सामने आ झुका। लेकिन राष्ट्र के लिए समर्पित इस जाबांज अधिकारी की प्रेम कहानी ने हमेशा की तुलना में थोड़ा अधिक समय लिया। हालांकि, आखिरकार साल 1998 में दोनों परिणय सूत्र में बंधे। एक सैन्य अधिकारी की बेटी होने के नाते, शिवानी के लिए नई जीवन शैली पहले जैसी ही थी। बस यही अंतर था कि पहले वह एक सैन्य अधिकारी की पुत्री थीं और अब एक सैन्य अधिकारी की धर्मपत्नी।

एक सिपाही के लिए, उसकी पहली पत्नी हमेशा उसकी ड्यूटी ही होती है। और शिवानी इन तमाम परिस्थितियों से भली-भांति वाकिब होने के बावजूद अपने प्यार को स्वीकार की थी। जब नवनीत ड्यूटी पर दूर होते तो उनकी यादों को दिल में संजोये, शिवानी अपने सारे सांसारिक दायित्वों को बखूबी निभाती।
अपने पति के बारे में शिवानी बतातीं हैं कि उस व्यक्ति में ऐसा बहुत कुछ था जो उसे सबसे अलग बनाता। वह एक बहुत अच्छा दोस्त, एक अद्भुत पिता और एक अद्वितीय पति थे।
वह घातक दिन जब सबकुछ खत्म हो गया
महीना, नवंबर वर्ष, 2003। मेजर नवनीत वत्स 3 गोर्खा राइफल्स के चौथे बटालियन के प्रमुख के रूप में पदस्त थे और उनकी प्रतिनियुक्ति 32 राष्ट्रीय राइफल्स में करते हुए श्रीनगर भेजा गया था। श्रीनगर में एक दूरसंचार भवन को खाली करने के लिए उन्हें ऑपरेशन करने का कार्य सौंपा गया था। दो आतंकवादी 18 नवंबर, 2003 के बाद से बीएसएनएल की इमारत में छिपे हुए थे। मेजर वत्स ने अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए इमारत में प्रवेश किया। हालांकि, यह आसान काम नहीं था।
मेजर वत्स और उनके बहादुर सैनिक पहले से ही घात लगाए उग्रवादियों के हमले की चपेट में आ गये। क्रॉस फायर में उन्होंने एक आतंकवादी को मार गिराया। हालांकि, सेना और आतंकियों के बीच गहन गोलीबारी में मेजर वत्स समेत चार सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए। मेजर वत्स को कुल छह गोलियां लगी और उनका बहुत सारा खून बह गया। गंभीर रूप से घायल अवस्था में वो वीरगति को प्राप्त हो गये।
मेजर वत्स अपने पीछे अपनी पत्नी शिवानी और एक तीन वर्ष की पुत्री को छोड़ गये।
शिवानी हार नहीं मानी और आज भी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभा रही
शिवानी 23 वर्ष की थी जब वह परिणय सूत्र में बंधी थी और महज चार वर्ष बाद 27 वर्ष की आयु में वह एक शहीद की विधवा बन गई। एक शहीद की विधवा के रूप में नए जीवन की शुरुआत करना शिवानी के लिए आसान नहीं था। लेकिन उसनें अपने आप को परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए तैयार की और अपनी तीन वर्ष की बेटी की परवरिश मुस्कुराहट और गर्व के साथ की। उन्होंने अपनी बेटी की जिंदगी में कभी पिता का अभाव नहीं खटकने दिया।

उनकी बेटी अब 10वीं कक्षा में पढ़ रही है और वह इस तथ्य पर गर्व करती है कि उसके पिता देश के सम्मान में विश्वास करते थे। आज वह गर्व से अपना सर ऊँचा करके कहती है कि उसके पिता के लिए देश की सेवा ही सर्वोच्च प्राथमिकता थी और इसी धारणा के साथ उन्होंने अंतिम सांस लिया।
जब कोई सैनिक अनन्तता की ओर बढ़ता है, तो वह एक परिवार को पीछे छोड़ देता है जो उसके गौरव, सम्मान और साहस पर भी जीवन जीता है। और हर मजबूत सिपाही के पीछे, एक छिपा हुआ सिपाही होता है – उसके जीवन साथी और परिवार के सदस्य के रूप में।
यह पोस्ट हर एक शहीद परिवार को उनके साहस, प्रतिबद्धता और विश्वास के लिए सलाम करता है। जय हिन्द!
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