प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजनाओं में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ और ‘मेक इन इंडिया’ नामक दो बड़े अभियान हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री ने प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान को बढ़ाने के लिए आमंत्रित किया। दिल्ली की अनिता और उनके पति शलभ पहले से ही इस अनोखे अभियान को अंजाम दे रहे हैं। वे प्लास्टिक के कचरे का पुनः उपयोग कर एक्सपोर्ट क्वालिटी के सुन्दर उत्पाद बनाते हैं। उनकी यह पहल न केवल ‘स्वच्छ भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को प्रोत्साहित करता है बल्कि हज़ारों कचरा बीनने वालों को रोजगार का अवसर भी प्रदान करता है।
भोपाल में पैदा हुई और दिल्ली में पली बढ़ी इस स्वतंत्रता सेनानी की बेटी अनिता आहूजा ने अपना सारा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया। कचरा बीनने वालों की दुर्दशा देखकर उन्होंने तय किया कि वे उनके जीवन को सुधारने के लिए कुछ करेंगी। उन्होंने एक सामाजिक उद्यम की शुरुआत की जिसके तहत कूड़ा उठाने वालों से प्लास्टिक कचरा को एकत्रित कर उससे विश्व-स्तरीय हैंडबैग बनाया जायेगा। इस बिज़नेस में उतरने का उनका कोई प्लान नहीं था और न ही समाज-सेवा करने का। जिंदगी में कुछ नया करने के उद्देश्य से उन्होंने कचरा बीनने वालों के लिए काम करना शुरू किया।
एक दिन अनिता ने कुछ अपने जैसे दोस्तों और परिवार वालों के साथ मिलकर अपने इलाके में कुछ छोटे-छोटे प्रोजेक्ट लेने का निर्णय लिया। उन्होंने एक एनजीओ ‘कंज़र्व इंडिया’ की शुरुआत की और इस प्रोजेक्ट के तहत सारे इलाके से कचरा एकत्र करना शुरू किया। एकत्रित किये कचरे से रसोई का कचरा अलग कर उसे खाद बनाने के लिए पास के पार्क में रखा जाता था। शुरुआत में ही उन्होंने यह महसूस किया कि कुछ भी अकेले हासिल नहीं होगा इसलिए अनीता ने दूसरी कॉलोनी से भी साथ माँगा। उनकी यह शुरुआत पैसा बनाने के लिए नहीं थी।
उनकी एनजीओ कंज़र्व इंडिया ने लगभग 3000 लोगों के साथ रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत की। यह एसोसिएशन 2002 में एक फुल टाइम प्रतिबद्धता वाली संस्था बनी जिनके पास खुद के अधिकार थे। चार साल अनीता ने कचरा बीनने वालों के साथ काम किया और यह महसूस किया कि उनका जीवन स्तर गरीबी के स्तर से भी नीचे है।
हमारे समाज में बहुत सारी समस्याएं हैं। एक एनजीओ किसी एक मुद्दे या समुदाय पर ही ध्यान दे पाता है। उन्होंने यह तय किया कि वे कूड़ा बीनने वालों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए काम करेंगी। उन्होंने इंटरनेट से रीसाइक्लिंग टेक्नोलॉजी पर जानकारी हासिल की और अलग-अलग चीजों को करने की कोशिश की।
सबसे पहले उन्होंने बुनाई का काम किया और कारपेट्स बनाये। परन्तु यह उत्पाद देखने में बहुत ही साधारण लगते थे, मेहनत भी ज्यादा थी और आर्थिक रूप से व्यावहारिक भी नहीं था और उन्हें बेचना भी कठिन हो रहा था। पर कुछ समय तक ऐसा ही चलता रहा। तब उन्होंने प्लास्टिक बैग विकसित करने का निर्णय लिया और यह काम अच्छा चल निकला। उन्होंने सोचा कि पहले वे प्लास्टिक बैग में आर्टवर्क करेंगी और फिर उसकी प्रदर्शनी लगायेंगी और तब जाकर पैसे बढ़ाने के लिए कोशिश करेंगी। उनके पति ने महसूस किया कि अनीता का यह प्लान काम नहीं करेगा। शलभ ने मशीन के द्वारा बड़े स्तर पर गढ़े हुए प्लास्टिक शीट्स तैयार करवाये। स्वचालित मशीन के द्वारा उसमें कलाकृति बनवाते और फिर उन्हें प्रदर्शनी में लगाते।
2003 में कंज़र्व इंडिया ने प्रगति मैदान के ट्रेड फेयर में हिस्सा लिया था। टेक्सटाइल मंत्रालय ने उन्हें एक छोटा सा बूथ दिया था और उन्हें इसमें 30 लाख का आर्डर मिला। अनिता और शलभ ने यह तय किया कि वे कंपनी का स्वामित्व लेंगे क्योंकि खरीददार सीधे एनजीओ से आर्डर लेने के लिए इच्छुक नहीं थे। प्लास्टिक वेस्ट के लिए कूड़ा बीनने वालों को घर-घर जाकर कूड़ा लेना पड़ता था परन्तु वह अनुपात में कम ही रहता था और फिर उत्पाद बनाने के लिए विशेष रंग वाले प्लास्टिक की जरुरत होती थी। इसके लिए उन्होंने कबाड़ वालों से सम्पर्क किया और सीधे इंडस्ट्री से भी प्लास्टिक कचरा मंगाने लगे।
धीरे-धीरे कंज़र्व इंडिया एक ब्रांड बन गया। साल 2020 तक कंज़र्व इंडिया का टर्न-ओवर 100 करोड़ तक पहुंच जायेगा। भीतर के कलाकार से प्रेरणा लेकर अनिता ने ऐसा कर दिखाया जो पहले कभी सोचा नहीं गया था। आज कंज़र्व इंडिया के हैंडबैग्स पूरे विश्व में खरीदे जाते हैं।
सच में यह बिज़नेस से कुछ अधिक ही है। यह आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह एक सोच है एक बेहतर और खूबसूरत दुनिया बनाने की।
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