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300 रुपये से 2500 करोड़ का साम्राज्य, विदेशी ब्रांडों को कांटे की टक्कर देती है इनकी स्वदेशी कंपनी

कहते हैं कि अगर व्यक्ति के अंदर लगन और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। हमें इस बात का बखूबी अहसास है कि युवा शक्ति का लोहा दुनिया भर में माना जाता है लेकिन युवा शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना बहुत बड़ी चुनौती होती है और जहाँ इस शक्ति को सही दिशा में मोड़ा जा सका है वहीं नई ऊँचाइयाँ नापी जा सकी है। आज हम एक ऐसे शख्सियत की कहानी लेकर आये हैं जिनकी सफलता युवा वर्गों को यह विश्वास दिलाती है कि इस दुनिया में हर कोई सफल हो सकता है बर्शते की राह में आने वाली तमाम चुनौतियों का मुकाबला करने की हिम्मत खुद में पैदा करनी होगी।

हम बात कर रहे हैं 2,500 करोड़ के राजहंस समूह की आधारशिला रखने वाले जयेश देसाई की सफलता के बारे में। जयेश भावनगर जिले के गारिहार नामक एक ऐसे गांव से ताल्लुक रखते हैं जो मुलभुत सुविधाओं से कई दशकों तक वंचित रहा है। एक वैष्णव बानिया के घर जन्में और पले-बढ़े जयेश के पिता एक छोटी किराने की दुकान चलाते थे। चार बेटियों के बाद चौथे बच्चे के रूप में जयेश पैदा हुए। इतने बड़े परिवार के भरण-पोषण के लिए किराने की दुकान बहुत छोटी थी।

परिवार के सामने बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए पैसे नहीं थे। जयेश को बचपन से ही प्रत्येक मोर्चे पर कमी का सामना करना पड़ा। जयेश को बचपन से ही कारों का बेहद शौक था लेकिन उन्हें पता था कि उनकी आर्थिक हालातों से तो सिर्फ गाड़ियों को देखकर ही संतोष करना पड़ेगा। दरअसल उन दिनों कई परिवार गांव से सूरत चले गए और ढ़ेर सारा पैसा बनाया। जब वे कारों में छुट्टी के दौरान गांव जाते तो जयेश उन्हें देख बहुत उत्साहित होते और उनके भीतर भी बड़ा बनने की प्रेरणा उत्पन्न होती थी।

जयेश बताते हैं कि धीरे-धीरे हमारे समुदाय के अधिकांश लोगों का पलायन भी मुंबई की ओर होना शुरू हो गया। अपनी बड़ी बहन भावना की मदद से इन्होंने भी मुंबई का रुख किया और नगदेव के नारायण ध्रुव स्ट्रीट पर 300 रुपये की मासिक वेतन पर एक बॉल-बियरिंग की दुकान में काम करने शुरू कर दिए। 30 रुपये प्रति माह की दर पर भोजन और 6-7 रूममेट्स के साथ कांदिवली में एक छोटे से कमरे में फर्श पर सोते हुए अपने जिंदगी की शुरुआत की। किसी तरह छह महीने व्यतीत करने के बाद जयेश को फिर से गांव की याद आ गई और पिता को पत्र लिखकर इन्होंने वापस घर आने की इच्छा बताई।

साल 1989 में जयेश वापस गांव जाकर पिता के छोटे दुकान को ही आगे बढ़ाने की दिशा में काम करने लगे। करीबन तीन साल तक तेल और साबुन बेचते-बेचते जयेश को इस बात का एहसास हो गया था कि किराये की दूकान चलाकर महंगी गाड़ियों की सवारी करने का उनका सपना अधूरा रह जायेगा। इसी दौरान इनके बचपन के एक मित्र छुट्टी के दौरान गांव पधारे। वो सूरत में हीरा व्यापार की दलाली करते हुए बहुत पैसे बनाये थे। उन्होंने जयेश को एक बार फिर से सूरत आने के लिए राजी कर दिया।

और एक बार फिर, जयेश बिना किसी योजना के 500 रुपये साथ लेकर सूरत की ओर रवाना हो गये। सूरत पहुँचने तक उनकी जेब में 410 रुपये ही शेष बचे। दोस्त के बताये हीरा व्यापारी के यहाँ कुछ महीनों तक काम किया लेकिन इसी दौरान इनके दिमाग में एक आइडिया सूझा। इन्होंने एक मित्र की सहायता से वचहार रोड पर एक दुकान किराए पर लेते हुए तेल बेचने का धंधा शुरू किये। पावाडी के पास धस्सा में एक तेल मिल से सीमित समय के लिए उधार तेल से दुकान शुरू हुई थी। फिर जब जयेश के पिता को इस बात का पता चला तो वे खुद तेल भेजते थे और जयेश उसे बेच वापस पैसे अपने पिता को भेज देते थे। यह धंधा अच्छा चला और पहले ही महीने 10,000 रुपये का मुनाफा हुआ।

इसी आइडिया के साथ आगे बढ़ते हुए जयेश ने पहले ही वर्ष 5 लाख का मुनाफा किया। शुरूआती सफलता से इनके हौसले को नई ताकत मिली और फिर इन्होंने अध्ययन और अनुभव की बदौलत कामरेज में एक छोटे से शेड में दो टैंकों के साथ अपने स्वयं के ब्रांड राजहंस तेल की शुरुआत की।

जयेश बताते हैं कि शुरुआत में हम फ़िल्टर्ड मूंगफली और कपास के तेल का इस्तेमाल करते थे। साल 1995 तक मुंबई में हमारे आधार मजबूत हो चुके थे और फिर हमने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र को कवर करते हुए शीर्ष पांच कंपनियों में शामिल हो गये।

तेल क्षेत्र में सफलता हासिल करने के बाद, उन्होंने अन्य क्षेत्रों में पैठ ज़माने के उद्देश्य से साल 1999 में एक कपड़ा मिल का अधिग्रहण किया। और इस तरह साल-दर-साल आगे बढ़ते हुए जयेश देश के एक नामचीन उद्योगपति के रूप में शूमार होने शुरू हो गये।

शुद्ध शाकाहारी परिवार से संबंध रखने वाले जयेश ने शिरडी, वैष्णो देवी और तिरुपति में तीन शुद्ध पांच सितारा शाकाहारी रेस्तरां भी खोली। हाल ही में इन्होंने 200 करोड़ के निवेश से कैडबरी और नेस्ले जैसी अंतराष्ट्रीय कंपनी को टक्कर देने के लिए चॉकलेट इंडस्ट्री में भी कदम रखा है। आज जयेश के राजहंस समूह का सालाना टर्नओवर 2500 करोड़ के पार है।

जो बच्चा कभी दूसरों की गाड़ी देखकर उससे प्रेरणा लेते हुए खुद के भीतर बड़ा बनने की सकारात्मक सोच पैदा की थी, आज अपनी सफलता से कई लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।

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