भारतीयों की केवल भारत के बिज़नेस में ही जड़ें नहीं है बल्कि अपनी प्रतिभा और ज्ञान के बल पर विदेशों में भी वे अपनी जड़ें जमा चुके हैं। आज हम जिनकी जीवन-यात्रा की कथा लेकर आपके पास आये हैं, वे बिज़नेस तो शुरू करना चाहते थे, पर उन्हें यह नहीं पता था कि उन्हें कैसे वहां तक पहुंचना है। इस तरह के सारे सवालों के जवाब उनकी कहानी में छिपे हैं।
परेश देवदरा एक अप्रवासी भारतीय हैं। 1972 में उनका परिवार सिर्फ 50 यूरो लेकर यूगांडा होते हुए इंग्लैंड पहुंचा था। उनका परिवार एक उद्यमी पृष्ठभूमि से था, इसलिए परेश की सोच भी एक दिन खुद मालिक बनने की थी। मार्केटिंग और कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें 23 साल की उम्र में लंदन की एक फॉरेन एक्सचेंज फर्म में नौकरी मिल गई।

सब कुछ अच्छा चल रहा था और उन्हें तनख्वाह भी अच्छी-खासी मिल रही थी। परन्तु उनके दिमाग में कुछ अलग ही चल रहा था। उन्होंने नोटिस किया कि जिस फर्म में वे काम कर रहे हैं उसका कोई ऑनलाइन प्लैटफॉर्म नहीं है। उनका प्लान पूरी तरह से साफ हो गया और उन्होंने तय कर लिया कि वे फॉरेन एक्सचेंज में अपने खुद के ऑनलाइन प्लेटफार्म पर काम करेंगे।
इस काम में राजेश अग्रवाल, जो उनके पिता के मित्र थे, ने परेश की काफ़ी मदद की। वे परेश से तीन साल पहले इंग्लैंड आये थे। राजेश परेश के आइडिया से काफ़ी प्रभावित हुए और फिर दोनों ने मिलकर अपने स्टार्ट-अप की शुरूआत की और नाम दिया रैशनल एफएक्स। उन्होंने अपने इस स्टार्ट-अप की शुरूआत केवल एक सेलफ़ोन और एक लैपटॉप के जरिये की। उनके लिए सबसे पहली चुनौती थी पूंजी इकट्ठा करना और इसके लिए राजेश ने बैंकों से सम्पर्क किया। परन्तु शुरूआत में उनकी कंपनी की बाजार में कोई प्रतिष्ठा नहीं थी इसलिए बैंक ने इसे अस्वीकार कर दिया। दूसरे दिन राजेश फिर बैंक गए और इस बार उन्होंने अपने लिए कार खरीदने के लिए पर्सनल लोन के लिए आवेदन किया। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने जितना लोन माँगा था उससे उन्हें दोगुनी रकम मिली। राजेश ने खरीदी हुई कार को बेच दिया और 32000 यूरो की पूंजी को अपने स्टार्ट-अप में निवेश किया।
पर्याप्त रकम मिलने के बाद परेश और राजेश ने मिलकर बैंक को फॉरेन एक्सचेंज सर्विसेज व्होलसेल रेट पर देने के लिए राजी करा लिया जिससे बैंक के ग्राहकों को उन्होंने एक अच्छी डील की पेशकश की। परेश ने अपनी बातचीत से बैंक को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि बैंक के लिए छोटे-छोटे ग्राहकों के बजाय रैशनल एफएक्स जैसे एक बड़े ग्राहक से डील करना ज्यादा आसान होगा। उसके बाद उन दोनों ने मिलकर फ़ोन पर ही कुछ कंपनियों से फॉरेन एक्सचेंज के लिए संपर्क किया। सबसे पहले उन्होंने अपना संपर्क बड़ी कंपनियों के साथ रखा जिससे उन्हें बाज़ार में अपनी साख बनाने में काफ़ी मदद मिली।
रैशनल एफएक्स के बिज़नेस मॉडल में बैंकों की तुलना में कम ओवरहेड्स थे। वे ग्राहकों के फायदे के बारे में ज्यादा सोचते थे और अपने लाभ का कम। इसलिए ये दूसरों से काफ़ी सस्ते थे। इससे उन्हें उपभोक्ता का सपोर्ट मिलने का फायदा हुआ। वे हफ्ते में दो-तीन दिन लंदन इवेंट्स में जाते थे जिससे उन्हें अपना नेटवर्क बढ़ाने में मदद मिली। आज भी उनका 60 फीसदी बिज़नेस पहचान के बल पर ही चलता है।

ब्रिगटन में छह महीने बिताने के बाद उन्होंने अपना बिज़नेस लंदन शिफ्ट कर लिया। 2012 में परेश और राजेश ने Xendpay लांच किया। यह रैशनल एफएक्स का सब्सिडियरी था। इसके ज़रिये लोग पैसे विदेशों में ऑनलाइन भेज सकते थे और लोगों को ज्यादा रक़म भेजने पर भी कम से कम पैसे की सर्विस चार्ज देनी होती थी। 2009 में एक्ट पास होने के बाद फॉरेन एक्सचेंज का लाइसेंस प्राप्त हुआ।
12 साल पहले शुरू हुए इस बिज़नेस का वार्षिक टर्न-ओवर आज 1.4 बिलियन यूरो है। 37 वर्षीय परेश की सोच यह है कि आज एक उद्यमी के पास करने के लिए काफ़ी कुछ है और उससे लाभ भी काफ़ी हो सकता है। परेश की लगन और मेहनत से उनका यह बिज़नेस फल-फूल रहा है। उन्होंने कभी भी कठिन परिस्थितियों में अपना धीरज नहीं खोया और यही उनकी सफलता का मूलमंत्र है।
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