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50 हजार से 5 लाख बनाने वाले इस 5वीं पास किसान की अनोखी खेती पद्धति से लें प्रेरणा

आजादी के 70 साल में भारत ने जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में अपनी धाक छोड़ी है। मगर प्रकृतिक आपदाओं जैसे अल्पवृष्टि और सूखा से निपटने में आज भी नाकामयाब है। देश में यह एक ऐसी समस्या है जिसके कारण किसान अात्महत्या तक के लिए मजबूर हो रहे हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र की समस्या तो और भी जटिल है। 2011 से हर साल चले आ रहे सूखा के कारण अबतक 2,450 कर्जग्रस्त किसानों ने अत्महत्या कर ली है जिसमें 702 तो सिर्फ बीड से हैं। इन सबके बावजूद इसी क्षेत्र के एक किसान ने मात्र एक एकड़ भूमि से ही इस साल अबतक 8 लाख रुपये की अकल्पनीय कमाई की है।

महराष्ट्र बीड के किसान विश्वनाथ बोबडे सिर्फ 5वीं पास है। वे अपने पैतृक जमीन पर अपने भाई के साथ मिलकर परंपरागत फसल जैसे मसूर और बाजरा की खेती किया करते थे। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने 6 एकड़ जमीन बेच कर घर बनवाया। शेष 4 एकड़ ही उनकी किसानी के लिए रह गये। घर के बढ़ते खर्च को जुटाने के लिए वे दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम करने लगे। 1992 में सड़क निर्माण के लिए सरकार ने उनके जमीन में से 2 एकड़ का अधिग्रहण कर लिया। और 1998 में दोनों भाइयों में बंटवारे के बाद एक-एक एकड़ जमीन ही हिस्से पड़ी। विश्वनाथ कमाई बढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते, मगर परंपरागत खेती की पद्धति और हर सूखे की मार ने उनकी स्थिति बद से बदतर कर दी। इन परिस्थितियों से परेशान विश्वनाथ ने किसानी की नई तकनीक आजमा कर अपने खेती की शैली में बदलाव लाने का प्रयास किया। अपने नित नये प्रयोग और अनुभवों से विश्वनाथ साल दर साल अपनी कमाई बढ़ाते गये और आने वाले वर्षों में उन्हें और बेहतर करने की उम्मीद है।

विश्वनाथ बोबडे के ये प्रयोग किए

1) बहु-फसल विधि

विश्वनाथ समझ चुके थे कि साल में मात्र दो फसल उपजाना ही काफी नहीं है। एक एकड़ जमीन पर बहु-फसल उपज पद्धति अपनाते हुए उन्होंने जमीन के चारो ओर घेरा लगवा कर लताएँ वाली सब्जियाँ लगाई। “अपने पारंपरिक फसल के साथ मैंने तुरई और करैला उपजाए। इससे तीन फसलें एक साथ उपजने लगी”, बोबडे ने ख़ास बातचीत में केनफ़ोलिओज़ को बताया। इस प्रयोग ने बेहतर परिणाम दिए और विश्वनाथ ने फूलगोभी और पत्तागोभी भी ऊपजाने का फैसला किया। पहले साल कमाई 3 लाख की हुई। मगर सिंचाई की कठिनाई जस की तस थी।

2) सुदृढ़ सिंचाई व्यवस्था

अपने पहले साल की कमाई से उन्होंने गाँव से गुजरने वाली बिन्दुसारा नदी के पास कुँआ बनवाया और वहाँ से पाईप द्वारा पानी अपने फसलों तक पहुँचाया। 2008 में इस पूरी व्यवस्था में 2 लाख का खर्च आया। पानी के छिड़काव से उच्चतम ग्रीष्म में भी खेतों में नमी बनी रहती है। पानी की सुदृढ़ व्यवस्था हो जाने के बाद विश्वनाथ ने टमाटर और तरबूजे उपजाने का निर्णय किया।

3) मौसमानुसार फसल रोपाई और कटाई

विश्वनाथ ने फसल बुआई और कटाई मौसमानुसार करने लगे। वे 6-7 फसलें साल में तीन बार उपजाने लगे। वे टमाटर, तुरई, करेला, फूलगोभी या पत्तागोभी मई के महिने में लगाते जिसकी कटाई का मौसम अगस्त के अंत में होता है। सितम्बर की शुरुआत में तुरई और ओकरा जैसी सब्जियों की बुआई के बाद जनवरी में उनकी कटाई होती और फिर फरवरी में तरबूजे और खरबूजों का समय आ जाता।

“मैंने जून माह में 4 लाख के टमाटर बेचे और जनवरी में 1 लाख की तुरई। इस साल तरबूजे से 2.5 लाख की कमाई हुई। पत्तागोभी से बहूत लाभ नहीं हुआ इसलिए अगले वर्ष दूसरी फसल लगाऊँगा”, उत्साहित विश्वनाथ ने बताया।

4) उच्च-क्यारी और मल्चिंग

समय के साथ-साथ उन्होंने उच्च-क्यारी और मल्चिंग विधि को भी अपनाया। जो काफी लाभदायक साबित हुआ। उच्च-क्यारी तकनीक में तीन से चार फुट चौड़ी क्यारीयाँ बना ली जाती है। जो किसी भी लम्बाई या आकार का होता है। ये क्यारीयाँ 6 इंच तक ऊठी होती है, जिसे चारो ओर से लकड़ी पत्थर या ईंटों से घेर दिया जाता है। पौधों को परंपरागत क्यारी की अपेक्षा ज्यमितिय आकार में नजदीक लगाया जाता है। विश्वनाथ के अनुसार उच्च-क्यारी के विविध लाभ हैं। इससे रोपाई का काल बढ़ जाता है और खर पतवार में कमी आती है। इन क्यारीयों पर नहीं चल पाने से मिट्टी दबती नहीं है और जड़ों को फैलाव मिलता है। फसलों के नजदीक रहने से खाद के प्रयोग से अधिक पैदावार मिलती है।

मल्चिंग विधि में क्यारीयों के ऊपर ऐसे तत्व बिछाए जाते हैं स्थानीय जलवायु प्रभाव को नियंत्रीत और सुधार करता है। क्यारीयों पर मल्च बिछाने से पानी का उतकृष्टतम प्रयोग संभव हो पता है। विश्वनाथ उच्च क्यारियों पर मल्च बिछा कर टामाटर और तुरई लगते हैं। दो ऊँच्च क्यारीयों के बीच 6 फीट की जगह रखते हैं, जहाँ फूलगोभी या ओकरा जैसी फसलें ऊपजाते हैं।

विश्वनाथ करते हैं कि एक एकड़ जमीन पर 1000 पेटी टमाटर ऊपजाए जा सकते हैं और 30 टन तरबूज। जाड़े में कटने वाली तुरई की भी अच्छी कीमत मिल जाती है।

5) जैविक खाद

पूरी सिंचाई और जैविक ऊर्वकों का छिड़काव फव्वारों के द्वारा किया जाता है। जरुरत मुताबिक HTP पंप और स्प्रे गन का भी प्रयोग विश्वनाथ करते हैं। पूरे काम के लिए विश्वनाथ सिर्फ 2 मजदूरों का सहारा लेते हैं। वह और उनकी पत्नी शकुंतला दोनो पौधों की दिन-रात देखभाल करती हैं। जिससे उत्पादन लागत कम होती है और मुनाफा बढ़ता है। कई किसानों ने विश्वनाथ से प्रशिक्षण ले कर इन एक एकड़ खेती तकनीक माॅडल का लाभ उठा रहे हैं।

विश्वनाथ ने कहा, ” प्रत्येक मौसम में मैंने 50,000 रुपये लगाये और इस साल का शुद्ध मुनाफा लगभग 5 लाख का हुआ। अगले साल और बेहतर लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि मैंने पूरी तरह जैविक खेती करने का निश्चय किया है। इससे उत्पादन लागत में और भी कमी आएगी। मैं किसान भाइयों से कहना चाहता हूँ कि कुछ भी असंभव नहीं बस बाजार पर नजर रखें और अपने सभी संसाधनों का प्रयोग करे। और कभी निराश न हो।”

“सफलता का सबसे छोटा सूत्र है, निरंतर कठिन परिश्रम और सौ फीसदी समर्पण।” सच है कि आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य अपनी क्षमता को पूरी तरह से ऊभार पाता है। जो काम कभी असंभव लगता है वह उसमें दक्ष हो जाता है। विश्वनाथ बोबडे ने हताशा की परिस्थिति में खुद को सक्षम बनाया और आज अपना और अपने आसपास के जीवन को बेहतर बना रहे हैं। मनुष्य कड़ी मेहनत करे और मनोवांछित परिणाम के लिए दृढ़ संकल्प रहे तो वह सब कुछ पाने में सक्षम है। बस एक कदम बढ़ाने की जरुरत है।

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