यह कहानी एक ऐसे इंसान की है जिन्होंने सपने का पीछा करते हुए कई रातों की नींद हराम की लेकिन सफल होकर ही दम लिया। भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान से पढ़ाई पूरी करने के बाद भी वह अपने मुकाम को हासिल करने में नाकाम रहे। अनगिनत विफलताओं के बावजूद भी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और आज एक सफल युवा उद्यमी के रूप में हमारे सामने खड़े हैं। इस शख्स की जीवन यात्रा पढ़ कर आपके भीतर भी कुछ कर गुजरने की भावना पैदा होगी।
गाजियाबाद और बीकानेर में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पले-बढ़े सत्या व्यास ने अपने माता-पिता के सपने को पूरा करते हुए आईआईटी की परीक्षा में बाज़ी मार ली। प्रतिष्ठित आईआईटी रुड़की में दाखिला लेने के बाद धीरे-धीरे पढ़ाई से उनका रुझान खत्म होता चला गया। सत्या खेल-खूद में ज्यादा रूचि रखते हुए अपने कॉलेज के लिए खेलने शुरू कर दिए और कई टूर्नामेंट भी जीते। लेकिन खेल-कूद के साथ-साथ उन्होंने न्यूनतम स्कोर करते हुए ही सही अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

सत्या ने कॉलेज में ही अपने एक दोस्त के साथ मिलकर एक सोशल नेटवर्किंग साइट बनाई, जहाँ भिन्न-भिन्न कॉलेज के छात्र अपने कॉलेज फंक्शन वाले विडियो को लोगों के साथ साझा कर सकते थे वो भी कम बैंडविड्थ पर। यह स्टार्टअप आइडिया तो काफी उम्दा था लेकिन कोई रेवेन्यू मॉडल नहीं होने की वजह से साईट बंद हो गई।
कुछ नया करने की चाह में सत्या के मन में एक नया आइडिया आया और उन्होंने एक कंप्यूटर गेमिंग मैगज़ीन की आधारशिला रखी। छात्रों के बीच हिट होने के बावजूद यह मैगज़ीन ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और एक बार फिर सत्या को मुँह की खानी पड़ी।
कॉलेज के अंत तक, सत्या ने मोटी तनख्वाह की नौकरी को ठुकराते हुए कॉमनफ्लोर डॉट कॉम के साथ इंटर्नशिप करने का निर्णय लेते हुए सबको चौंका दिया। कुछ दिनों तक यहाँ काम करने के बाद उन्होंने इसे भी छोड़ दिया और अपने तीसरे स्टार्टअप की शुरुआत करी, वो भी आठ महीने के बाद बंद हो गया। कम कैलोरी सैंडविच बेचने के इनके इस आइडिया ने निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहा।
लगातार असफल होने के बाद सत्या की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई और फिर उन्होंने मुंबई आने का फैसला किया। उनकी जेब में फूटी कौड़ी तक नहीं बची थी और फिर उन्होंने अपने दोस्तों से 100 रुपये उधार लेने शुरू कर दिए। इतना ही नहीं उनके रूममेट ने उनके 24वें जन्मदिन के दिन ही उन्हें फ्लैट खाली करने के लिए कहा। इस दौरान सत्या ठाणे और सीएसटी के बीच लोकल ट्रेनों में घंटे बिताया करते, सिर्फ यह सोचने के लिए कि आगे कहाँ और क्या किया जाय।
फिर अंत में उन्होंने अगले दो महीनों तक उन्होंने आईआईटी बॉम्बे में पढ़ रहे अपने भाई के साथ अवैध रूप से बिताया। खाली समय में वे अपनी गलतियों का विश्लेषण करते हुए कॉलेज के समय खारिज किये गये जॉब की वजह से खुद को कोसते रहते। लेकिन उन्होंने जिस वजह से जॉब छोड़ा था वो था खुद का कारोबार शुरू करना जो कि उनका सपना था। जॉब से सत्या को पैसे तो मिल जाते लेकिन उनका सपना अधूरा रह जाता।
एक बार फिर सत्या ने कुछ नया करने के इरादे से बंगलौर के लिए रवाना हुए और वहां आईआईटी रुड़की के अपने पुराने साथी शुभांशु श्रीवास्तव के साथ मिलकर ‘ओरोबिंद’ नाम से एक फिटनेस प्लेटफार्म की शुरुआत की।
यह पहली बार था जब सत्य अपने इस आइडिया की सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। लेकिन अगले कुछ महीनों में, वे खतरनाक तरीके से दो बार दिवालिया होने के करीब तक पहुँच गये। हालांकि उन्हें शुरुआत में 40 ग्राहक मिल चुके थे, लेकिन फिर भी व्यवसाय को तेज गति से आगे बढ़ाने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने सबसे पहले अपने यहाँ कार्यरत प्रशिक्षकों को भुगतान करने का फैसला किया और फिर कुछ पैसे बचते उससे अपना गुजारा करते।

धीरे-धीरे उनका यह आइडिया लोकप्रिय होता चला गया और आज ओरोबिंद के बेंगलुरु में 1,000 से ज्यादा ग्राहक हैं और इनके लिए 135 से ज्यादा निजी प्रशिक्षक भी। अपने इस आइडिया को बड़े पैमाने पर खोलने के उद्देश्य से उन्होंने 50 से ज्यादा निवेशकों से संपर्क किया लेकिन किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।
लेकिन सत्या ने कभी हार नहीं मानी और साल 2016 में उनकी कंपनी को हौसेजॉय ने अधिगृहित किया। हौसेजॉय अमेज़न के द्वारा फण्ड की गई कई करोड़ों की कंपनी है।
सत्या की सफलता से यह सीख मिलती है कि हमें खुद के अंदर बाधाओं के खिलाफ डटकर मुकाबला करने की शक्ति उत्पन्न करनी होगी, तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होंगे।
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