500 वर्ग फुट में 500 रुपये की लागत से हुई शुरुआत, फायदे से भरा है यह अनूठा कारोबार

एक दौर हुआ करता था जब खेती-किसानी बस बेबस लोगों के हिस्से पड़ी थी। आजीविकाओं के अभाव में या तो लोग शहर की ओर पलायन कर जाते थे या फिर खेती-किसानी को गले लगा लेते थे। लेकिन बदलते समय के साथ अब लोगों की सोच भी बदल चुकी है। कृषि के क्षेत्रों में नए-नए प्रयोग के साथ कई सफल किसान उभर कर सामने आए हैं। हमारी आज की कहानी एक युवा किसान की सफलता को लेकर है जिन्होंने देश के युवाओं के सामने मिसाल कायम की है।

बिहार के सीतामढ़ी जिले से ताल्लुक रखने वाली अनुपम कुमारी अपने घर की आर्थिक स्थिति से काफी चिंतित थी। उनके पिता पारंपरिक तरीके से खेती किया करते थे। साथ ही उनके पिता शिक्षक के रूप में काम करते थे। दिन-रात मेहनत के बावजूद भी सही कमाई नहीं हो पा रही थी। ऐसे में उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़ किसानी को ही पूरा समय देने का निश्चय किया। तबतक अनुपम भी अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। फिर पिता-पुत्री ने मिलकर खेती में कुछ नया करने का निश्चय किया। 

वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के गुर सीखने के लिए दोनों ने कृषि विज्ञानं केंद्र का रुख किया। अनुपम ने मशरूम उत्पादन और केंचुआ खाद उत्पादन विषयों पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। इतना ही नहीं उन्होंने सीतामढ़ी, पटना और दिल्ली के विभिन्न शोध संस्थानों में खेती की भिन्न-भिन्न बारीकियों को सीखा। फिर वापस अपने गाँव लौटकर मशरूम उत्पादन की नींव रखी।

साल 2010 में महज 500 वर्ग फुट के खेत में 500 रुपये की शुरूआती पूंजी से इस रुपये की शुरूआती काम की शुरुआत हुई। गाँव में इससे पहले कोई इस तरह की खेती नहीं किया था। प्रोत्साहन देने की बजाय गाँव वासियों ने उनपर तंज कसने शुरू कर दिए। 

लोग हमारा मजाक बनाया करते थे। हमें देख कर कहा करते थे कि देखो “गोबर चट्‌टा” उगा रही है।

लेकिन वे लोगों की बातों को नज़रंदाज़ करते हुए अपने काम में लगी रही। उनकी मेहनत रंग लाई और शुरू के 3 महीने में ही उन्हें 10,000 रुपये की कमाई हुई। शुरूआती सफलता देख जो लोग मजाक उड़ाया करते थे, उन्होंने ही प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। आज लगभग गाँव की सभी महिलाएं उनसे प्रशिक्षण प्राप्त कर खुद खेती करने के लिए प्रेरित हैं। 

आज अनुपम हर तीन महीने में 50 क्विंटल मशरूम की बिक्री करती हैं। इससे न उन्हें सिर्फ अच्छी-खासी कमाई हो रही है बल्कि उन्होंने गाँव की महिलाओं के सामने भी रोजगार के एक नए अवसर का सृजन किया है। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए वे गेंहू के भूसे और फूस आदि का इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा वह गांव में केंचुआ खाद उत्पादन (वर्मी कम्पोस्ट) की जानकारी भी कृषकों को दे रही हैं। साथ ही उन्होंने मछली पालन और बागवानी भी शुरू की है।

अनुपम की सफलता देश के युवाओं के लिए वाकई में मिसाल है। यदि इसी सोच के साथ देश की युवा शक्ति आगे आए तो फिर भारत को वैश्विक महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।

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