अभावों में जूझ रही माँ से मिली प्रेरणा, 5,000 की तनख़्वाह से बना लिया 30,000 करोड़ का साम्राज्य

बहुत दिनों तक अपने परिवार को सही तरीके से चलाने के लिए मात्र 5000 की तनख्वाह के साथ चंद्रशेखर घोष ने बेहद संघर्ष किया। साल 1990 के आखिर में उन्होंने कुछ अलग करने की सोची। उस समय त्रिपुरा का यह व्यक्ति कोलकाता की एक गैर सरकारी संस्था, विलेज वेलफेयर सोसाइटी नामक संस्था के प्रोग्राम हेड थे।

53 वर्ष के घोष का जन्म त्रिपुरा के अगरतला में हुआ। उनका बचपन बहुत ही संघर्षों से भरा हुआ था। उनके पिता अपने मिठाई की दुकान की कमाई से घर चलाया करते थे। पर वे अपने बेटे की बेहतर शिक्षा के प्रति जागरूक थे। अपने पिता की सहायता और अपने खुद के तप के बल पर घोष ने अपनी मास्टर डिग्री ढाका यूनिवर्सिटी से सांख्यिकी में किया।

अपने बुरे दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि एक दिन उनकी माता झोपड़ी के बाहर चावल बना रही थी और बहन  धूल-मिटटी में खेल रही थी। चंद्र शेखर जैसे ही अपनी बहन को सफाई पर एक प्रवचन देने जा रहे थे की उनकी माँ ने उनसे कहा कि उनकी बेटी तीन दिनोँ से मछली खाने की जिद कर रही है और आज भी उन्होंने उसे एक झूठा ही दिलासा दिया है। इस वाक्य को घोष कभी नहीं भूल पाए।

अपनी माता द्वारा इन परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने से घोष का मन इन अभावों से ऊपर उठने को कृत संकल्प हो गया। एक घटना और जो घोष को चैन से सोने नहीं दे रहा था, वह यह कि एक सब्जी बेचने वाले का आया, जो एक साहूकार के उत्पीड़न का शिकार था। यह सब्जी बेचने वाला रोज के 500 रुपये उधार लेता था और उसके एवज में हर शाम साहूकार को मूल और ब्याज दोनों चुकाता था। यह रक़म इतनी होती थी की वार्षिक दर से उसे 700% का ब्याज देना होता था।

संघर्ष के दिनों से उबरने के लिए घोष ने माइक्रोफाइनेंस संगठन खोलने का निश्चय किया। इसके तहत बहुत ही छोटे स्तर पर अपना कारोबार करने वाली महिला उद्यमियों को लोन दिया जाना था। इसी उदेश्य को पूरा करने के लिए 2001 में बंधन नामक बैंक की शुरुआत हुई। बंधन बैंक भारत की एक बैंकिंग और वित्तीय सेवा कंपनी है। 23 अगस्त 2015 को पश्चिम बंगाल में बंधन फाइनेंसियल सर्विसेज़ ने बंधन बैंक नाम के बैंक की शुरुआत की। भारतीय रिजर्व बैंक ने माइक्रो संस्थान बंधन को पूर्ण वाणिज्यिक बैंक आरम्भ करने की स्वीकृति दे दी। यह बैंक भारत के गांवों और कस्बों में लोगों को लोन देता हैं, हालांकि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लोन देना उनकी पहली प्राथमिकता है।

बंधन माइक्रो फाइनेंस की अगुवाई में आज इनकी 2000 से भी ज्यादा शाखाएं है जो सिर्फ महिला सदस्यता वाली, शून्य पोर्टफोलियो रिस्क वाली, और 100 फीसदी रिकवरी रेट के साथ है। उनके चेयरमैन अशोक लाहिड़ी जी कि मानें तो यह एक अग्रणी एजेंसी है जो सामाजिक परिवर्तन पर ही केंद्रित है। घोष ने यह संस्था कोलकाता के एक छोटे से कस्बे में रहने वाली 25 निराश्रित महिलाओं की सहायता के लिए शुरू किया था। जिनकी औसत आमदनी पहले 300 रुपये थी लेकिन आज वह बढ़कर 2000 रुपये हो गई है।

आज से करीबन 15 साल पहले एक एनजीओ के रूप में शुरू हुई माइक्रोफाइनेंस कंपनी बंधन को आरबीआई ने बैंक खोलने की अंतिम मंजूरी दे दी जबकि उसके मुकाबले में रिलायंस, बिड़ला और बजाज समूह की कंपनियां भी थीं।

अब तक बंधन अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की नजर में भी आ चुकी है। साल 2011 में विश्वबैंक की सहायक इकाई इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) ने बंधन में 135 करोड़ रुपये का निवेश किया था। वर्तमान में बंधन बैंक का वैल्यूएशन 30 हज़ार करोड़ है।

बंधन का ध्येय सशक्तिकरण के माध्यम से गरीबी मुक्त दुनिया का सृजन करना है। इनका इरादा 2022 तक विश्व स्तर पर इंटरनेशनल माइक्रोफाइनेंस संस्था बनाने का है जो लगभग 10 मिलियन लोगों को सेवा प्रदान कर सके।

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