5000 रुपये, एक संकल्प, शुरुआत छोटी ही थी, लेकिन आज 74 देशों तक फैल चुका है कामयाबी का साम्राज्य

एक बीमा एजेंट जिसके जेब में सिर्फ 5000 रुपये थे लेकिन दिनों-दिन कई छोटे-मोटे क़र्ज़ के तले उसकी जिंदगी दबती जा रही थी। उसे इस बात का तनिक भी ऐहसास नहीं था कि आने वाला वक़्त उसके लिए और बुरा होने वाला है। हालांकि आम लोगों की तरह इसने भी जिंदगी जीने के लिए संघर्ष जारी रखी।

आप विश्वास नहीं करेंगे की आज यह लड़का दुनिया के गिने-चुने पूंजीपतियों की कतार में शामिल है।

पंजाब के मोगा जिले के भिंडरकला गांव में एक गरीब परिवार में पैदा लिए लक्ष्मण दास मित्तल के पिता हुकुम चंद अग्रवाल मंडी में आढ़ती थे। किसी तरह परिवार का दाना-पानी चल रहा था। हालांकि गरीबी के बावजूद उनके पिता ने हमेशा उन्हें पढाई के लिए प्रेरित किया। शहर के सरकारी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद लक्ष्मण ने पंजाब यूनिवर्सिटी से कारेस्पोंडेंस अंग्रेजी व उर्दु में मास्टर डिग्री हासिल की।

कहते हैं न कुछ लोग गरीबी और अभाव को ही अपना हथियार बना पूरी मजबूती से लक्ष्य की ओर टूट पड़ते हैं। लक्ष्मण दास ने भी पूरी मेहनत कर एमए अंग्रेजी में गोल्ड मेडलिस्ट बन बैठे। एमए करने के बाद भी नौकरी के लिए उन्हें काफी संघर्ष करनी पड़ी।

लक्ष्मण दास मित्तल ने 1956 में अपने करियर की शुरुआत एलआईसी में बीमा एजेंट के तौर पर की। फिर कुछ दिनों तक काम करने के बाद प्राप्त तजुर्बे और अंग्रेजी की अच्छी-ख़ासी जानकारी की बदौलत उनकी पदोन्नति फील्ड अफसर के रूप में हो गई और इस दौरान उन्हें विभिन्न राज्यों में काम करने का मौका मिला।

उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा परिवार के उपर जमा क़र्ज़ को चुकता करने में ही चला जाता था। लेकिन उन्होंने ख़ुद का पेट काट कर पैसे जमा करने लगे। जिंदगी में कुछ बड़ा करने की चाह में लक्ष्मण को इस बात का बखूबी एहसास हो गया कि इस तरह साल-दर-साल कहीं नौकरी करने से ऊँचा मक़ाम हासिल नहीं हो सकता। अंततः उन्होंने ख़ुद की सेविंग्स से बिज़नेस शुरू करने का फैसला लिया।

दरअसल 1966 में उन्होंने नौकरी के दौरान ही बिजनेस में कदम रखा और एग्रीकल्चर मशीनें बनानी शुरू कीं। लेकिन तीन साल के भीतर ही उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। उनकी सारी पूंजी डूब गई और वे दिवालिया हो गए। लेकिन इस विपत्ति की हालात में भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी गलतियों से सीखते हुए नए शिरे से बिज़नेस करने की योजना बनाई।

इस दौरान नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने मारुती उद्योग की डीलरशिप के लिए आवेदन किया लेकिन वो भी ख़ारिज हो गई। अंत में उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पहुंचकर वहां गेहूं से भूसे व दाने को अलग करने वाली जापानी मशीन देखी। और फिर होशियारपुर लौट कर उन्होंने नए सिरे से थ्रैशर तैयार किया।

इस बार रिजल्ट परफेक्ट था। आठ सालों के भीतर ही उनके थ्रैशर का नाम विश्व में जाना जाने लगा।

और इस तरह सोनालिका थ्रैशर के नाम से यह कंपनी पूरी दुनिया में तहलका मचानी शुरू कर दी। फिर उनके कई ग्राहकों ने उन्हें ट्रेक्टर बनाने के भी सुझाव दिए। लक्ष्मण दस को भी किसानों का यह सुझाव अच्छा लगा और उन्होंने 1994 में ट्रैक्टर मेन्यूफेक्चरिंग की शुरुआत की।

सबसे पहले उनकी कंपनी ने दो ट्रैक्टर एसेंबल किए। लगातार दो साल तक दोनों पर रिसर्च के बाद 1995 में भोपाल की लैब में हुई टेस्टिंग में रिजल्ट पॉजिटिव निकला लेकिन पैसे की कमी के चलते ट्रैक्टर मैन्यूफेक्चरिंग में परेशानियाँ हो रही थी।

लेकिन लगातार किसानों की तरफ से आ रहे रिक्वेस्ट ने उन्हें ट्रेक्टर बनाने के लिए प्रतिबद्ध कर दिया। इसके बाद उन्होंने सभी नजदीकी डीलरों से बात की। सभी बिना ब्याज पैसा देने को राजी हो गए। करीब 22 करोड़ रुपए इकट्ठे हुए। इसके बाद जालंधर रोड पर सोनालिका ट्रैक्टर की नींव रखी। 1996 में सोनालिका की पहली ट्रेक्टर खेतों में दौड़ी।

इसके बाद लक्ष्मण दास मित्तल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज 74 देशों में सोनालिका ट्रैक्टर एक्सपोर्ट हो रहा है। इतना ही नहीं विश्व के पांच देशों में इसके प्लांट हैं।

लक्ष्मण दास मित्तल जो कि कभी मारुती की डीलरशिप के लिए आवेदन किये थे, आज दूसरे को डीलरशिप देते हैं। 1200 करोड़ रुपये की निजी संपत्ति के साथ आज ये दुनिया के अरबपतियों की सूची में शुमार कर रहे हैं।


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