हमारे देश में शायद ही कोई क्षेत्र होगा जहाँ महिलाओं ने अपना परचम ना लहराया हो। भले ही समाज में यह मानसिकता रही है कि महिलाओं को बाहर का कोई काम नहीं करना चाहिए। लेकिन बदलते वक़्त के साथ महिलाएं भी अपना हक़ लेना सीख गई हैं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद महिलाएं अब घर से बाहर निकल हर जगह अपनी मेहनत से अपना मुकाम स्थापित कर रही हैं। चाहे वह पुलिस प्रशासन जैसा कठिन क्षेत्र ही क्यों ना हो, महिलाएं आज वहां भी अपनी जगह बनाने से नहीं चूक रही हैं।
आज हम एक ऐसी ही महिला की बात कर रहे हैं, जिसनें पिता के देहांत बाद भी अपना हौसला नहीं छोड़ा और कड़ी मेहनत से मात्र 28 वर्ष की उम्र में सिक्किम की पहली महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल की।

आईपीएस ऑफिसर अपराजिता राय सिक्किम की पहली महिला आईपीएस अधिकारी हैं। स्कूल के दिनों से ही अपराजिता पढ़ने में बहुत मेधावी छात्रा थीं। वे अपनी क्लास में हमेशा अव्वल आती थीं। पढ़ाई के अलावा अपराजिता को संगीत और नृत्य में भी अच्छी रूचि थी। वे स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर हिस्सा लिया करती थी। अपराजिता की ज़िन्दगी में दुःखों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब मात्र 8 वर्ष की छोटी उम्र में उनके सर से पिता का साया छीन गया। पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति थोड़ी बिगड़ गई। इसके बावजूद अपराजिता हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
अपराजिता के परिवार वालों ने उनका पूरा साथ दिया और पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। सबको भरोसा था कि अपराजिता आगे चलकर जरूर कुछ बड़ा करेगी। जल्द ही उनकी मेहनत रंग लायी और उसने 12वीं बोर्ड परीक्षा में 95% अंक हासिल कर बोर्ड टॉपर रहीं। पूरे राज्य में टॉप करने के लिए उन्हें ताशी नामग्याल एकेडमी में “बेस्ट गर्ल ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी” से सम्मानित भी किया गया था। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपराजिता ने लॉ की पढ़ाई करनी चाही और कोलकाता का रुख की। लॉ की पढ़ाई करने का भी उनका मकसद समाज की बुराइयों के खिलाफ लड़ना ही था। उन्होंने कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ज्यूडिशियल साइंसेज से वर्ष 2009 में एलएलबी की डिग्री पूरी कर ली।
लेकिन समाज सेवा के जज्बे से ओतप्रोत अपराजिता अब यूपीएससी की परीक्षा देने का निश्चय किया। एक साल की तैयारी के बाद ही 2010 में उन्होंने सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी और सफल भी रहीं। उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में 768वां रैंक हासिल कर लिया। लेकिन वो और अच्छा स्थान हासिल करना चाहतीं थी लिहाजा उन्होंने दोबारा परीक्षा देने की ठानी। 2011 में अपने दूसरे ही प्रयास में अपराजिता नें 358वां रैंक लाकर सबको चौंका दिया। अपराजिता की सफलता की कहानी यहीं नहीं रुकी , उन्होंने अपनी ट्रेनिंग के दौरान भी बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। इसके लिए उन्हें “बेस्ट लेडी आउटडोर” की ट्रॉफी भी दी गयी थी।

अभी अपराजिता की पोस्टिंग पश्चिम बंगाल में है। वे हमेशा अच्छे कामों के कारण सुर्ख़ियों में बनीं रहती हैं। वे जहाँ भी रहती हैं लॉ एंड ऑर्डर से कोई भी समझौता नहीं करती हैं। अपराजिता को इसके लिए ढेर सारे अवार्ड से सम्मानित भी किया जाता रहा है। उन्हें फील्ड कॉम्बेट के लिए “श्री उमेश चंद्र ट्रॉफी”, “ट्राफी फ़ॉर बीट टर्नआउट” तथा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा “गवर्मेंट ट्रॉफी फॉर बंगाली” सहित ढेरों अवार्ड से नवाजा जा चुका है।
सिक्किम जैसे इलाके से होने के बावजूद इतनी कम उम्र में बहुत कुछ हासिल कर अपराजिता नें एक मिसाल कायम की है। अन्य लड़कियों और महिलाओं को भी उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है।
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