बहुत से लोग अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते क्योंकि वे अपना लक्ष्य ही बहुत छोटा रखते हैं और हार जाते हैं। यह कहानी ऐसे व्यक्ति की है जिन्होंने अपनी जिंदगी यूं तो बड़े सामान्य तरह से जी पर एक चीज़ थी जो उन्हें सब से अलग करती थी और वह यह कि उन्होंने अपना लक्ष्य बड़ा रखा और लक्ष्य को पाने की जी जान से कोशिश की।
एक लड़का जो तेरह साल की उम्र में एक मेकैनिक की नौकरी करता था, आज उसका नाम फेसबुक के फाउंडर मार्क ज़ुकेरबर्ग जैसी बड़ी हस्तियों के साथ शुमार हो गया है। एक लड़का जो पैसे की खातिर कुत्ते के बच्चे बेचा करता था आज उसका नाम वेल्थ-एक्स के द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार चालीस वर्ष तक के उम्र के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में वे दसवें स्थान पर है। उन्होंने इतनी कम उम्र में अपने खुद के दम पर बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
यह अरुण पुडुर की कहानी बेहद प्रेरणा देने वाली है। उनका जन्म चेन्नई में हुआ था। उनकी माता एक घरेलू महिला थीं और उनके पिता सिनेमेटोग्राफर थे। अरुण का बचपन बहुत ही साधारण था। उन्हें याद है कि उनके पिता की कमाई शुक्रवार को ही तय होती थी क्योंकि इस दिन उनके पिता की फिल्म रिलीज़ होती थी।

वे कहते हैं कि “उन कठिन दिनों की वजह से मैं यह महसूस कर पाया कि अगर मुझे सफल व्यक्ति बनना है तो उसके लिए मुझे अपना शत -प्रतिशत देना होगा।”
अरुण बेंगलुरू में पले-बढ़े। उन्होंने अपने आप को बनाने के लिए समय का पूरा उपयोग किया। जब वह तेरह वर्ष के थे तब उन्होंने अपने पिता से पास के ही गेराज में काम करने की इजाज़त मांगी। बिना किसी गूगल और गाईड की मदद के उन्होंने अपने साथ काम कर रहे मैकेनिक को देख-देखकर बाइक बनाना सीखा। अचानक एक दिन उनके मालिक गैराज छोड़ कर चले गए, तब अरुण ने अपनी माता से कुछ हजार रुपये मांगे और उन्हें गैराज खरीदने के लिए राजी कर लिया। अरुण ने बहुत ही कम समय में इस काम में महारत हासिल कर ली। वे एक घंटे और पंद्रह मिनट में ही गाड़ी का इंजन खोल लेते थे और उसे बिना किसी स्पेशल टूल्स के वापस फिक्स भी कर लेते थे। उनका गेराज कुछ ही समय में मशहूर हो गया और इसरो के वैज्ञानिक ने भी वहाँ आकर अपनी गाड़ी फिक्स करवाई।
“जहाँ उनके दोस्त लड़कियों का पीछा करने में लगे रहते थे वहा मैं आंत्रप्रेन्यर के गुर सीखने में लगा रहता था।”-अरुण
अरुण को बिज़नेस में मज़ा आने लगा था और वह अपने स्कूल से वापस आकर तुरंत ही गेराज आ जाते। उनका अधिकतर समय बिज़नेस के दाँव-पेंच सीखने में ही निकल जाता था। उनके पिता ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा तब उन्होंने अपना गेराज बंद कर दिया। पांच साल तक चलाकर उसने गेराज को एक लोकल कंपनी को एक करोड़ रुपयों में बेच दी। अरुण ने अपनी माँ से 8000 रुपये उधार लेकर जिस गेराज को ख़रीदा आज उसे एक करोड़ में बेच कर सारा पैसा उसने अपनी माँ को सौंप दिया।
अरुण का अगला कदम कुत्तों की ब्रीडिंग करा कर अच्छी नस्ल के कुत्ते तैयार करना और उन्हें बेचना था। वह बॉक्सर और रॉटवैलर्स नस्ल की ब्रीड तैयार करते थे और उन्हें अच्छे दामों में बेचते थे। एक कुत्ते के बच्चे के उन्हें 20,000 रूपये मिल जाया करते थे। तब उन्होंने अपने पिता से रिटायर होने को कहा।
कुछ समय बाद उन्होंने यह महसूस किया कि आने वाला समय नई टेक्नोलॉजी का है और अरुण समय के साथ चल पड़े। उन्होंने एक कंपनी खोली जिसका नाम सेलफ्रेम था। यह कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय वर्ड प्रोसेसर बनाती थी।

सेलफ्रेम अपना प्रोडक्ट बेचने में आज विश्व के दूसरे नंबर पर है ऐसा अरुण ने बताया। उन्होंने अपने बिज़नेस के लिए पब्लिक सेक्टर और बहुत सारे एशियाई और अफ्रीकन गवर्नमेंट के ग्राहक पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अरुण ने साउथ अफ्रीका में गोल्डमाइन भी ख़रीदा है। उनका अगला लक्ष्य अगले पांच सालों के भीतर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा प्लैटिनम उत्पाद बनाने की है।
अरुण जब 21 वर्ष के थे तब करोड़पति बने और जब 26 वर्ष के हुए तब अरबपति बने। कुआलालुम्पुर में स्थित कंपनी पुडुर कॉर्प उनकी पत्नी देख रही हैं। पुडुर कॉर्प अब 70 देशों में 20 उद्योगों तक फ़ैल चुका है। उसकी आमदनी 134 अरब डॉलर और 36 अरब डॉलर मुनाफ़ा तक पहुँच चुका है। जो हाथ कभी गेराज-मेकेनिक की कालिख से पुते होते थे आज स्वर्णिम सफलताओं की श्रंखला रच कर नया मक़ाम हासिल कर चुके हैं।
आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें