किसी ने सही कहा है बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। लेकिन इसके लिए बड़े ही जतन से बूंद-बूंद का संचय करना होता है और यदि बात हो महिलाओं की तो मेहनत से संचय करने की कला में वो माहिर होती हैं। एक गृहिणी जब अपनी हुनर और काबिलियत के दम पर परिवार का पोषण कर सकती हैं तो सोचिए वह मानसिक रूप से किस हद तक सक्षम और क्षमतावान होती होंगी, इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी ही महिला की है जिन्होंने घर के काम के साथ-साथ अपनी क्षमताओं के दम पर अपने हुनर को नई उड़ान दी और आज हमारे बीच एक सफल उद्यमी के रूप में विराजमान हैं।
हमारी आज की कहानी की नायिका हैं महिलाओं के लिये कपड़े बनाने वाली ब्रांड ‘बीबा’ की संस्थापिका मीना बिंद्रा।

आज से क़रीब 33 साल पहले दो बच्चों की माँ मीना जब घर का सारा काम कर लेती तो उनके पास अपना बाकी का बचा समय बिताने का कोई ज़रिया नहीं था। इसी खाली वक्त ने उन्हें विचार करने को मजबूर किया और उस एक विचार से शुरूआत हुई महिलाओं के लिये रेडीमेड कपड़ों को बनाने और उन्हें बाजार में बेचने की प्रक्रिया। लेकिन आज मीना का शौक करोड़ों के व्यवसाय की शक्ल ले चुका है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मीना ने बैंक से 8 हजार रूपये कर्ज लेकर अपने व्यवसाय की आधारशिला रखी थी लेकिन मेहनत और कुछ कर गुजरने के ज़ज्बे ने उस छोटे से रेडीमेड व्यवसाय को एक ब्रांड का रूप दे दिया। आज बीबा ब्रांड देश-विदेश में एक जाना पहचाना नाम है जो सफलता के पैमाने पर बिलकुल खड़ा उतरा है।
आइये अब आपको बताते हैं कि जब शौक जुनून में बदलने लगता है तो कैसे सफलता के शिखर को छू लेता है।
दिल्ली में एक व्यवसायी परिवार में जन्मीं मीना को बचपन से ही संघर्षों का सामना करना पड़ा। सिर से पिता का साया मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही उठ गया था। उसके बाद उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया। पढ़ाई के बाद मात्र 19 साल की उम्र में उनका विवाह एक नेवी के अधिकारी से हो गया। शादी के बाद मीना घर गृहस्थी में खुद को भूल ही गयी। 20 साल तक मीना घर और बच्चों की जिम्मेदारी संभालने में व्यस्त रही लेकिन बच्चों के बड़े होने के बाद मिलने वाले खाली समय में उन्होंने कुछ करने की सोची।
मीना बताती हैं कि “पढ़ाई के दिनों से ही मेरी रुची कपड़ों की डिजाइनिंग में थी और मैं रंगों और प्रिंट के बारे में कुछ अनौपचारिक जानकारी भी रखती थी लेकिन मैंने कभी उसकी कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली थी। उन्हीं दिनों मेरी मुलाकात ब्लाॅक प्रिंटिंग का कारोबार करने वाले देवेश से हुई। मैंने रोजाना देवेश की फैक्ट्री जाना शुरू किया और वहीं पर प्रिंटिंग और कपड़ों पर होने वाले विभिन्न रंगों के संयोजन के बारे में बारीकी से सीखा। उसके बाद मैंने अपने पति से व्यवसाय शुरू करने के बारे में बात की और उन्होंने मुझे सिंडिकेट बैंक से 8 हजार रुपये का लोन दिलवाकर इस काम को शुरू करने में मदद की।”
बैंक से 8000 लोन लेने के बाद मीना ने सबसे पहले महिलाओं के लिये 200 रुपये से भी कम कीमत के आकर्षक सलवार-सूट के 40 सेट बनाए और अपने घर पर ही उनकी सेल लगा दी। उनके बनाये सूट महिलाओं को बहुत पसन्द आये और आस-पड़ोस की महिलाओं ने तो उन सूटों को हाथोंहाथ खरीद लिया और उन्हें करीब 3 हजार रुपये का मुनाफ़ा हुआ। इस सफलता ने मीना के आत्मविश्वास को बढ़ाया और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
मीना बताती हैं कि ‘‘मुनाफे में मिले पैसे से मैं और कपड़ा लाई और मेरे बनाए सूट इस बार भी जल्दी ही बिक गए। कुछ ही समय में साल भर के अंदर ही मेरे बनाए कपड़े आस-पास के इलाकों में मशहूर होने लगे और मुझे ऑर्डर पूरे करने के लिये 3 कारीगर रखने पड़ गए।”
इसके आलावा शीतल और बेंजर जैसे कपड़ों के थोक विक्रेता भी मीना के द्वारा तैयार किये गए कपड़े पसंद करने लगे। धीरे-धीरे मीना का काम इतना बढ़ गया कि अब बात आॅर्डर-बुक और बिल बुक तक पहुँच गयी। ऐसे में मीना को एक नाम की आवश्यकता थी जिससे वे अपने बनाये कपड़ों को बाजार में उतार सके। चूंकि पंजाबी में लड़कियों को प्यार से ‘‘बीबा’’ कहते हैं इसलिये ब्रांड का यही नाम रखा गया जो जल्द ही रेडीमेड कपड़ों की दुनिया का सरताज बनकर उभरा।
मीना अपनी शुरुआत को साझा करते हुए बताती हैं कि ‘‘मुझे कभी अपने बनाए कपड़ों का विज्ञापन नहीं करना पड़ा। मुझे लगता है कि मैंने ऐसे समय में रेडीमेड कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया, जब इन कपड़ों के खरीददार बाजार में आने शुरू ही हुए थे और मेरे बनाए कपड़ों की फिटिंग और गुणवत्ता ने जल्द ही उन्हें मेरा क़ायल बना दिया।”
कुछ समय बाद ही घर पर चलने वाला मीना का अस्थाई बुटीक छोटा पड़ने लगा और उन्हें कैंप कॉर्नर इलाके में एक बड़ी जगह पर शिफ्ट होने का निर्णय लेना पड़ा। इसी दौरान मीना के बड़े बेटे संजय ने भी अपनी बी.काॅम की पढ़ाई पूरी की और अपनी माँ के काम में हाथ बंटाने शुरू कर दिए। जल्द ही माँ-बेटे की जोड़ी ने दुनिया को सफलता की परिभाषा बता दी । और अपनी मेहनत के दम पर 1993 का दौर आते आते बीबा भारत की पारंपरिक पोशाकों के क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम बनकर सामने आया।
समय बदलने लगा फिर मांग और ज़रूरत बदलने लगी। 90 के दशक के मध्य में शाॅपर्स स्टाॅप ने बाजार में दस्तक दी उन्हें अपने यहां बेचने के लिये भारतीय महिलाओं की पारंपरिक पोशाकों की जरूरत थी जिसके लिये उन्होंने ‘‘बीबा’’ से सम्पर्क किया। ‘‘शाॅपर्स स्टाॅप के साथ काम करने के दौरान मीना ने समय की पाबंदी से आॅर्डर सप्लाई करने के सिद्धांत को अपनाया जो आज भी उनकी सफलता का राज हैं। समय बीतने के साथ ही वर्ष 2002 में मीना के छोटे बेटे ने हार्वर्ड से स्नातक करके उनके व्यवसाय में कदम रखा और इसके बाद तो उनका ब्रांड मानो सातवें आसमान पर पहुँच गया।
वर्ष 2004 में मुंबई में बीबा ब्रांड ने दो स्थानों पर अपने आउटलेट खोले और नतीजे काफी चौंकाने वाले थे। दोनों आउटलेट को भारी सफलता मिली और उनकी मासिक बिक्री 20 लाख रुपये प्रतिमाह को पार कर गई जो वाकई आश्चर्य का विषय था।

मीना बताती हैं कि ‘‘इसके बाद हमने अपनी नीति में कुछ बदलाव किये और हम हर खुलने वाले अच्छे शाॅपिंग माॅल में अपने आउटलेट खोलने लगे। आज वर्तमान में पूरे देश में हमारे 90 से अधिक आउटलेट हैं और हमारी सालाना आय लगभग 600 करोड़ के पार हो चुकी है।’’
आज बड़ी से बड़ी हस्तियां बीबा की तरफ आकर्षित हैं। सच में मीना ने अपनी लगन और मेहनत के बल पर टाईम पास के लिये शुरू किये गए व्यवसाय को ग्लोबल ब्रांड के रूप में परिवर्तित कर दिखा दिया कि अगर जुनून हो तो छोटे से आइडिया को भी बड़ी से बड़ी सफलता में बदला जा सकता है।
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