आज के दौर में लोग सिर्फ नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं। भीड़ लाखों की है और नौकरियों की संख्या इतनी की आप उँगलियों पर भी गिनती कर सकते हैं। लेकिन फिर भी लोग किसी दूसरे विकल्पों की ओर नहीं देख रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोग कृषि को छोड़ कर चंद हज़ार की नौकरियों के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। पर आज हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे हैं जिसने न सिर्फ हज़ारों की सैलरी वाली कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी, बल्कि आज एक नक्सल प्रभावित इलाके में आर्गेनिक डेयरी फार्मिंग कर कई युवाओं को नौकरी दे रहे हैं। आप यकीन नहीं करेंगे आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है।
40 वर्षीय संतोष शर्मा का पुस्तैनी घर यूँ तो बिहार के छपरा जिले है पर उनका जन्म जमशेदपुर में हुआ। दरअसल संतोष के पिता जमशेदपुर के टाटा स्टील कंपनी में काम करते थे और संतोष भी बचपन से वहीं रहते हैं। संतोष के जन्म के कुछ महीनों बाद ही उनके पिता रिटायर हो गए। संतोष अपनी तीन बहनों के बाद सबसे छोटे हैं। रिटायरमेंट के बाद उनके पिता पुरे परिवार के साथ गाँव जाना चाह रहे थे। पर संतोष की माँ नें बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए जमशेदपुर में ही रहने का फैसला किया।

उनकी माँ की एक दोस्त नें उन्हें कुछ गायें दी और उसी गाय को पालकर उनकी माँ बच्चों को स्कूल भेजती थी।
केनफ़ोलिओज़ से विशेष बातचीत में संतोष ने बताया कि “दूध से मेरा रिश्ता बचपन से ही है, दूध बेचकर ही मैंने पढ़ाई की है। तीन बहनों के बाद मैं अकेला लड़का था, तो मेरी शिक्षा के लिए भी माँ नें दूसरों की बात ना मानते हुए शहर में ही रहीं। ताकि हमारी पढ़ाई ख़राब ना हो। माँ ने मेरा दाखिला एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवा दिया था। मेरी माँ और दीदी बोला करती थीं कि जब तक ये फेल नहीं होता इसे इंग्लिश स्कूल में पढ़ने दो, जब फेल हो जाएगा तो इसे सरकारी स्कूल में डाल देंगे। पर मैं कभी फेल ही नहीं हुआ।”
उसके बाद उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी पढ़ाई खत्म की और ग्रेजुएशन के दौरान ही कॉस्ट मैनेजमेंट अकॉउंटेंसी की पढाई भी की। जिसके बाद उनकी नौकरी मारुती के गुड़गांव हेडक्वार्टर में लग गई।
संतोष कहते हैं “पहले हमारी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। पर नौकरी के बाद हमारी स्थिति कुछ सुधरी। मुझे सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी थी पर मैं जॉब को छोड़ नहीं सकता था।”
उसके बाद उन्होंने दूसरे संस्थानों के लिए भी काम किया, वे कोटक महेंद्र बैंक में बिहार-झारखण्ड हेड भी रहे। उस दौरान लोगों नें उनको उनके आइडियाज पर किताब लिखने के लिए कहते थे। उसके बाद उन्होंने एयर इंडिया ज्वाइन किया, यहां पर उनकी मासिक सैलरी 85,000 रुपए थी। 2011 तक उन्होंने एयर इंडिया के लिए ही काम किया। यहाँ उनको किताब लिखने का थोड़ा वक़्त मिलने लगा। शर्मा अभी तक दो किताबें नेक्स्ट वॉट इज इन और डिजॉल्व द बॉक्स भी लिख चुके हैं। उनकी दूसरी किताब डिजॉल्व द बॉक्स बहुत प्रचलित हुई। कई संस्थानों नें अपने सिलेबस तक में इस किताब को सम्मलित किया है। संतोष आईआईएम, आईआईटी सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों में गेस्ट लेक्चरर के रूप में भी जाते हैं।
संतोष बताते हैं कि वे एक बार पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ कलाम से मिले थे। श्री कलाम नें उन्हें अपने आवास पर बुलाया था और उनसे कहा था कि ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे हम देश के युवाओं की ताकत को भारत के विकास में लगा सकें। तभी से संतोष कुछ ऐसा करने की जुगत में लगे थे। फिर उन्होंने आर्गेनिक डेयरी फार्मिंग करने के बारे में सोचा। 2016 में उन्होंने इसकी शुरुआत की 80 लाख रुपए के निवेश और 8 जानवरों के साथ। जमशेदपुर से 35 किमी दूर स्थित दलमा वन्यजीव अभ्यारण्य जो एक नक्सल-प्रभावित क्षेत्र है, वहां ही उन्होंने इस फार्म की आधारशिला रखी। ताकि ऐसे क्षेत्रों के युवाओं को भी रोज़गार मिल सके।

संतोष के फार्म का नाम मम्स आर्गेनिक डेरी फार्म है। यहाँ वे बिलकुल शुद्ध व आर्गेनिक दूध, दही, पनीर आदि का उत्पादन करते हैं। वे प्लास्टिक के पैकेट के बजाए ग्लास बोतल में दूध की सप्लाई करते हैं। उनके पास अभी 100 गायें हैं। वे करीब 100 लोगों को रोज़गार भी मुहैया करवा रहे हैं। जिसमे बड़ी संख्या स्थानीय युवाओं की है। अभी उनके कंपनी का टर्नओवर 2 करोड़ के पार चला गया। भविष्य में संतोष अपनी कंपनी को अन्य शहरों तक भी ले जाना चाहते हैं। उसके अलावा वे आर्गेनिक खेती व टूरिज़्म बिज़नेस पर ही फोकस कर रहे हैं।
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