हमारे देश की लगभग 70 फीसदी आबादी आज भी गाँवों में निवास करती है। जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। किसान हमारे भोजन के लिए दिन रात मेहनत करते हैं लेकिन बदले में उन्हें उसका उचित मूल्य तक नहीं मिल पाता है। तमाम विसंगतियों, विपन्नताओं एवं अभावों से जूझते हुए भी कभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि आत्महत्या एकमात्र विकल्प रह जाता है। ऐसे में अपनी पैदावार और कमाई को बढ़ाने के लिए कुछ किसान अपने ही स्तर पर भिन्न प्रयोग और अनुसंधान कर अपनी स्थिति को बेहतर बना रहे हैं और अन्य किसानों की मदद भी कर रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान अपने अनुभव और प्रयोग से पारंपरिक खेती में बदलाव कर साल 2005-06 से 2017 तक लगातार मात्र एक एकड़ में 1000 क्विंटल गन्ने की पैदावार कर हर वर्ष 1 करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं।

मुबंई से 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले की तहसील वालवा में कारंदवाडी निवासी किसान सुरेश कबाडे ने 19 फ़ीट लंबे गन्ने की पैदावार कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। 9वीं कक्षा पास इस किसान से पद्धति सीखने के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश तक के किसान संपर्क कर रहे हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनकी ईजाद तकनीक का इस्तेमाल करने वालों में पाकिस्तान के भी कई किसान शामिल हैं। बाकी किसानों के मुकाबले सुरेश के गन्ने की फसल की खास बात यह है कि उनके उपजाए गन्ने की लम्बाई अन्य किसानों से कहीं अधिक 19 फीट और वजन 4 किलो तक होता है।
केनफ़ोलिओज़ से ख़ास बातचीत में उन्होंने बताया, “ये पेड़ी का गन्ना था, लंबाई 19 फीट थी और उसमें 47 कांडी (आंख) थीं। हमारे दूसरे खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं। बीज मैं खुद तैयार करता हूँ। देश में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, पांच से छह फीट की दूरी और आँख की आँख की दूरी 2 से ढाई फीट रखता हूं। किसान खेतों में सीधे उर्वरक बो देते हैं, मैं गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालता हूं। मेरे हर खेत में 1000 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन होता है।”
करीब 30 एकड़ में आधुनिक तरीकों से खेती करने वाले सुरेश खास इसलिए हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बेहतर उत्पादन करने वाला किसान 500 क्विंटल प्रति एकड़ की ही उपज़ ले पाता है। जबकि औसत उत्पादन 400 क्विंटल ही है। सुरेश के खेत का गन्ना दूसरे इलाकों के किसान बीज के लिए ले जाते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि गन्ना मील को देने के बजाए बीज में ज्यादा जाए क्योंकि वो ज्यादा मुनाफ़ा देता है। बीज के लिए जून-जुलाई में कटाई होने के कारण पेड़ी गन्ने का भी औसत अड़साली गन्ने का आता है। इस साल उनके पेड़ी गन्ने का औसत एक एकड़ मे 120 टन मिला और गन्ने की लंबाई 20 फीट तथा एक गन्ने का वजन 4 किलो तक हुआ।
किसानों की आत्महत्या के कुख्यात महाराष्ट्र में सुरेश गन्ने से सलाना 50-70 लाख की कमाई करते हैं, जबकि हल्दी और केले को मिलाकर वो साल में एक करोड़ से ज्यादा का काम करते हैं। वर्ष 2015 में उन्होंने एक एकड़ गन्ना, बीज के लिए 2 लाख 80 हजार में बेचा था। 2016 और 2017 में एक एकड़ गन्ने का बीज वो 3 लाख 20 हजार में भी बेच चुके हैं। बाहर के राज्य के कर्नाटक, मध्यप्रदेश के किसान उनके यहाँ से बीज खरीदते हैं। लेकिन कुछ साल पहले तक वो भी उन्हीं परेशान किसानों में शामिल थे जो भरपूर पैसे लगाने के बावजूद बेहतर उत्पादन नहीं ले पाते थे।
नौवीं पास सुरेश खेती को किसी वैज्ञानिक की तरह करते हैं। वह बताते हैं, “पहले मेरे खेत मैं भी प्रति एकड़ 300-400 क्विंटल की पैदावार होती थी, फिर मैंने जहाँ कमी महसूस की, खेती के पद्धति को बदल कर उसे पूरा किया। भरपूर जैविक और हरी खाद डालता हूँ, एवं एजेक्टोबैक्टर और पीएसबी और पोटॅश (पूरक जीवाणु) का इस्तेमाल करता हूँ। गन्ना बोने से पहले उस खेत में चना बोता हूं। उसमें भी समय और मौसम का ध्यान रखता हूं।”
उन्होंने बताया, “अब मैं टिशू कल्चर से भी गन्ना उगाने लगा हूँ। मेरे एरिया में केले का टिशू कल्चर बनाने वाली फर्म है। मैं उससे अपने खेत में सबसे बढ़िया एक गन्ने से टिशू बनवाना हूं, जिससे तीन साल तक फसल लेता हूं।” टिशू कल्चर यानि किसी एक पौधे के ऊतक अथवा कोशिकाएं प्रयोगशाला की विशेष परिस्थितियों में रखी जाती हैं, जिनमें खुद रोग रहित बढ़ने और अपने समान दूसरे पौधे पैदा करने की क्षमता होती है। सुरेश अपने पूरे खेत से 100 अच्छे (मोटे, लंबे और रोगरहित) गन्ने चुनते हैं, उनमें 10 वो स्थानीय लैब ले जाते हैं, जहां वैज्ञानिक एक गन्ना चुनते हैं और उससे एक साल में टिशू बनाकर देते हैं। सुरेश बताते हैं, “इसके लिए करीब 8 हजार रुपये मैं लैब को देता हूं, वो जो पौधे बनाकर देते हैं, जिसे एफ-1 कहा जाता है एफ-1 और एफ-2 में गन्ने का साइज कम होता है जिसके कारण उत्पादन कम मिलता है।इसलिये मैं एफ-3 होने के बाद उस गन्ने का बीज बनवाता हूँ जिसके फलस्वरूप बहुत ही अच्छा उत्पादन मिल जाता है।
हमारे महाराष्ट्र के संत तुकाराम महाराज जी ने 350 साल पहले कहा है “शुद्ध बीजा पोटी फळे रसाळ गोमटी” जिसका अर्थ होता है बीज अच्छा है तो उसके फल भी मीठे मिलते हैं।

वो बताते हैं किसी भी फसल के लिए ज़मीन और अच्छा बीज होना बहुत अहम होता है। “मैं इन दोनों को काफी अहमियत देता हूं। मैं अपने बीज खुद तैयार करता हूं, बेहतर तरीके से खेतों की जुताई, खाद पानी का इंतज़ाम करता हूं।” जिसके कारण सुरेश बीज के लिए खेत में 9-11 महीने फसल रखते हैं तो मील के लिए 16 महीने तक गन्ना खेत में रखते हैं। वो कहते हैं किसान को पेड़ी के गन्ने का बीज नहीं बोना चाहिए। महाराष्ट्र में तमाम किसान उनकी तकनीक अपना रहे हैं। पिछले दस साल से उन्होंने गन्ने का पत्ती जलाना बिल्कुल बंद कर दिया है। जिसके कारण उनके खेत में बहुत ही सुधार आया है। और उनके जमीन में केंचुए की संख्या भी बहुत ज्यादा मात्रा मे बढ़ रहे है।
खेती किसानी के क्षेत्र में सुरेश कबाडे के इस प्रयोग और परिणाम को किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी मान्यता दी है और सराहा है।
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