IIT इंजीनियर द्वारा 6000 रुपये से शुरु हुआ यह प्रयास 5000 बच्चों और 8900 किसानों के जीवन को बनाया बेहतर

एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले युवक का सपना होता है कि बेहतर शिक्षण संस्थान से पढ़ाई कर अच्छी आय वाली बढ़िया नौकरी करे, अपना और अपने परिवार का जीवन बेहतर बनाए। मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी उच्च शिक्षा और ज्ञान का प्रयोग समाज की बेहतरी के लिए चुनते हैं। वह ऐसी रचना करते हैं कि अधिक से अधिक वंचित और मुख्यधारा से छूट चुके लोगों का कल्याण हो। वे पूरे परिवेश से प्रेरित हो कर उस परिवेश को बदल कर क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते हैं। जहाँ हर किसी के लिए भोजन, वस्त्र, शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था हो।

एक ऐसे ही समाज की कल्पना को हकीकत रुप देने के संकल्प के साथ चल रहे हैं विशाल सिंह। वाराणसी में जन्में विशाल ने आईआईटी, खड़गपुर से एग्रीकल्चर एण्ड फूड टेक्नोलाॅजी से मास्टर डिग्री हासिल किया है। एक कृषक पृष्ठभूमी से आनेवाले विशाल के पिता किसान हैं और माँ एक कुशल गृहणी। बचपन में जब वे अपने पिता और दादा के साथ खेतों में जाते थे तो वहां उन्होंने पाया कि खेती करने में मजदूरों पर आश्रित होना पड़ता है। और मजदूर मिलना भी काफी मुश्किल होता था।

वह एक ऐसी व्यवस्था चाहते थे जहाँ कृषि श्रमिकों पर कम से कम आश्रित हो। ओडिशा यूनिवर्सिटी आॅफ एग्रिकल्चर एण्ड टेक्नोलाॅजी (OUAT) से एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अास-पास के क्षेत्र में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक अंतर को काफी महसूस किया। 2011 में उन्होंने उड़ीसा में कुछ शोध कार्य किए और पाया कि समस्या सिर्फ खेती से जुड़ी हुई नहीं बल्कि गाँव में बच्चों को भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की बेहद कमी है। इस गंभीर अव्यवस्था से प्रभावित हो उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए आईआईटी, खड़गपुर जाने का निश्चय किया।

विशाल ने साल 2012 में अपने NGO केवल्य विचार सेवा संस्था (KVSS) का रजिस्ट्रेशन करवाया और पश्चिम बंगाल के सोलाधार और गोपाली गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरु किया। 40 बच्चों के साथ जब विशाल ने यह काम शुरु किया तो उनके पास महज 6,000 रुपये थे। उनके इस प्रयास को प्रोफेसरों और आईआईटी तथा OUAT के भूतपूर्व छात्रों और दोस्तों का साथ मिला। 2012 के अंत तक विशाल ने KVSS की सेवाएँ उड़ीसा के मयुरभंज, बारगढ़ और गजपति जिले और उत्तर प्रदेश में चंदौली, एटा, अलीगढ़ और लखनऊ जिले तक पहुँच गई। 2013 में विशाल को जाॅब आॅफर आने तक IIT-भुवनेश्वर, NIT-जमशेदपुर, OUAT, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और झारखण्ड सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी और कई बड़े यूनिवर्सिटी से 400 से अधिक स्वयंसेवक जुड़ चुके थे। 2014 तक KVSS की सेवाएँ सीधे तौर पर 2,500 बच्चों तक पहुँच चुकी थी। इन सेवाओं में अन्नदानम, वस्त्रदानम, शिक्षादानम और स्वास्थ्यदानम है जिसमें भोजन, कपड़े, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। इन बच्चों को आधुनिक प्रणाली के साथ बराबरी के लिए तथा कौशल विकास के लिए तरह-तरह की शैक्षणिक, खेलकूद और अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाते हैं।

आईआईटी से M.Tech. करने के बाद विशाल स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया, लखनऊ के रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट विभाग में काम करने लगे। इसके बाद 2014 में उन्होंने सेन्चूरियन युनिवर्सिटी आॅफ टेक्नोलाॅजी एण्ड मैनेजमेंट के एग्रीकल्चर विभाग के हेड आॅफ डिपार्टमेंट के रुप में काम किया। परंतु इस काम को भी छोड़ कर वे पूरी तरह से KVSS में वक्त और उर्जा देने लगे। KVSS के वर्तमान में 4 अनाथालय और 6 प्राथमिक विद्यालय हैं जो उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड के 15 गाँवों को जोड़ रहा है।

अपनी प्राथमिक प्रयासों की सफलता के बाद विशाल ने कृषि में भी सुधार के प्रयास करने शुरु किए। KVSS ने पिछड़े लोगों के जीविकोपार्जन और खेती की समस्या को दूर करने के क्षेत्र के प्रयास मे तेजी लाया। कई गाँव घूमने के बाद विशाल ने पाया कि वहाँ के आदिवासियों के पास भूमि है लेकिन वे बाहर की दुनिया से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। आदिवासी लोढ़ा प्रजाति के लोग एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते हैं। कुपोषण के शिकार उनके बच्चे नंगे बदन इधर-उधर घूमते रहते हैं। शिक्षा क्या होती है, उन्हें पता भी नहीं। उन्होंने इन आदिवासियों को खेती से जोड़ कर जीविका कमाने का रास्ता समझाया।

2016 में विशाल की संस्था ने किसानों के लिए शून्य लागत पर जैविक खेती का माॅडल बनाया और इस तरह सीमांत किसानों की जीविकोपार्जन की समस्या का सामाधान किया। प्रारंभ में संस्था ने किसानों को जैविक खेती से संबंधित जानकारियां उपलब्ध कराई। रसायनों से मुक्त भोज्य पदार्थों का उत्पादन करने की दिशा में यह एक कारगर कदम था। इसके बाद KVSS ने “एक एकड़, एक लाख रुपये, एक साल” का माॅडल तैयार किया। इस माॅडल को बहुत से किसानों ने अपनाया जिससे जैविक खेती को प्रोत्साहित करने का अवसर प्राप्त हुआ। जहाँ किसान अपनी परंपरागत खेती से औसतन 60,000 रुपये कमा पाते थे, वहीं इस माॅडल से औषधीय पौधे, जड़ी-बूटी और फूलों की खेती कर प्रति एकड़ 1,00,000 रुपये अधिक कमा रहे हैं।

विशाल ने जब अपनी नौकरी छोड़ने का मन बनाया था तो उनके घर वाले इस निर्णय से खुश नहीं थे। विशाल भी असमंजस में थे और उन्हें आगे की राह स्पष्ट करने में दुविधा थी। ऐसे में उनके एक मित्र ने उन्हें हिम्मत देते हुए समझाया और फिर विशाल ने नौकरी से इस्तीफा दे कर पूरे मन से अपने सामाजिक कल्याण के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तन, मन, धन से जुड़ गये। विशाल के इस प्रयास से अबतक 5000 बच्चे और 8,900 किसान लाभान्वित हुए हैं। इन के जीवन स्तर में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। KVSS ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में लघु उद्यमिता के विकास का भी माॅडल लाने की योजना बना रही है। जिसमें वे जैविक उर्वरक, खाद और कीटनाशक निर्माण के साथ साथ मशरुम की खेती, पोल्ट्री और दुग्ध उत्पादन जैसे घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना चाहते हैं।

विशाल सिंह का यह प्रयास सामाजिक जिम्मेदारी की चेतना जागरूक करने का एक विशिष्ठ उदाहरण है। जहाँ बड़े-बड़े संस्थाओं से पढ़े छात्र ओहदे और पैसे के लिए अपने गाँव और देश तक को छोड़ देते हैं, वहीं विशाल अपने हमवतनों के लिए उन सभी सुविधाओं का त्याग किया जो उन्हें आसानी से उपलब्ध हो रही थी। ऐसे ही सामाजिक चेतना का विकास हमारे देश के पढ़े-लिखे युवाओं में जागृत हो तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में सर्वप्रथम होगा।


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