IIT-IIM से पढ़ाई पूरी कर करोड़ों की नौकरी छोड़ यह युवा गौ पालन से कर रहा गांव का कायापलट

रोजगार की तलाश में एक ओर जहाँ गांव से युवाओं का पलायन शहर की ओर थमने का नाम नहीं ले रहा, वहीं नई पीढ़ी के कुछ युवा अपनी अच्छी-खासी शहरी नौकरी छोड़ गांव की ओर रुख कर रहे हैं। ये लोग न सिर्फ गांव की दशा और दिशा बदल रहे बल्कि अपने प्रयास से ग्रामीण युवाओं को गांव में ही रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रहे। अपने गांव की कायापलट करने की ललक में सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण शहरी जीवन का त्याग करने वाले इन्हीं युवाओं में असल मायने में भारत को महाशक्ति बनाने की ताकत है।

आज हम ऐसे ही एक युवा व्यक्तित्व से आपको रूबरू करा रहे हैं जिन्होंने भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थान से पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने सफल कॉरपोरेट कैरियर को अलविदा कह अपने गांव के किसानों की स्थिरी सुधारने में जुटे हुए हैं।

41 वर्ष के विज्ञान गाडोडिया यसबैंक में बतौर वायस प्रेसिडेंट करोड़ों की नौकरी छोड़ जब अपने पैत्रिक गांव पधारे तो सबको आश्चर्यचकित कर दिया। गौरतलब है कि साल 2005 में जब गाडोडिया यस बैंक के माइक्रो फाइनेंस के प्रमुख के तौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में काम करने पहुंचे और रिसर्च के दौरान पाया कि ग्रामीणों को गरीबी से बाहर निकाल पाने में माइक्रोफाइनेंसिंग कुछ खास मदद नहीं कर पा रही है। जमीनी हकीकत जानने के बाद उन्हें बेहद दुःख हुआ और फिर उन्होंने निश्चय किया कि वो ग्रामीण इलाके में ही अपना एक उद्यम शुरू करेंगें।

इसी सोच के साथ उन्होंने जुलाई 2006 में अपनी नौकरी छोड़ गांव की ओर रुख किया। 2006 से 2011 तक सतही तौर पर उन्होंने वर्मीन कंपोस्ट बनाने, जैविक खेती करने और एक ग्रामीण एनजीओ के लिए बीपीओ स्थापित करने का काम किया। यहाँ काम करने के दौरान ही उन्हें गांव में गाय के दूध की अव्यवस्थित वितरण प्रणाली में एक कारोबारी संभावना दिखी। साल 2012 में आइडिया को धरातल पर लाते हुए उन्होंने जयपुर से 70 किलोमीटर दूर लिसारिया गांव में तकरीबन पौने दो एकड़ में एक डेयरी उद्योग की स्थापित की। इस कारोबार के पीछे उनका एकमात्र मकसद था लोगों को शुद्ध औऱ ताजा दूध उपलब्ध कराना।

विज्ञान का मानना है कि गायों को प्रोत्साहन देने पर बेहतर, स्वास्थ्यवर्धक और भैंस की तुलना में ज्यादा पौष्टिक दूध मिलता है जो एक बेहतर संसाधन साबित हो सकता है।

चंद गायों से शुरू हुआ गाडोडिया का “सहज एग्रोफार्म” आज 150 से ज्यादा मवेशियों का दूध जयपुर के तकरीबन 250 से ज्यादा घरों में पहुंचा रहे हैं। गाडोडिया ने न सिर्फ एक सफल डेयरी फर्म का निर्माण किया बल्कि अपनी सफलता का उदाहरण देते हुए आस पास के 25 गांवों में तकरीबन सभी किसान गौ पालन करने के लिए प्रोत्साहित भी किये।

सहज में आज दूध देने वाली पचास गाय हैं और दूध का उत्पादन हर दिन तकरीबन 500 लीटर होता है। लेकिन हाल ही में विज्ञान ने अपने फार्म में दूध प्रसंस्करण इकाई स्थापित कर लेने के बाद आस पास के किसानों से भी दूध इकठ्ठा करने की शुरूआत कर दी है। उन्होंने खुद का दूध का ब्रांड भी बनाया है और उसे देश के अन्य शहरों में भी मुहैया कराने की ओर अग्रसर हैं।

प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल कर विज्ञान ने अपनी उद्यमशीलता का परिचय देते हुए सैकड़ों किसानों को एक नया राह दिखाया और अपनी सफलता से उन तमाम लोगों के सामने एक मिसाल भी पेश किया जो खेती-किसानी को कम आंकते हुए शहरी नौकरी करने में विश्वास रखते।

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