बेटी की ज़िद में माँ ने नौकरी छोड़ शुरू किया कारोबार, देखते-ही-देखते 500 से बन गए 40 लाख

“ये चढाई पाँव क्या चढ़ते इरादों ने चढ़ी है”; कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति शेरिल डेनिस की आज की सफलता-गाथा पर सौ फीसदी सटीक बैठती है। हर किसी को अपने सपनों को साकार देखने की इच्छा होती है, पर यह आसान नहीं होता। अपनी सहजता-वृत से बाहर निकलकर कुछ करना और बड़ा रिस्क उठाना सबके वश की बात नहीं होती। भाग्यशाली होते हैं वे लोग जिन्हें अन्तत: प्रेरणा मिलती है अपने सपनों को पूरा करने की। जब चेन्नई से ताल्लुक रखने वाली शेरिल हफ्टन की बेटी ने उन्हें उनकी नौकरी छोड़ने को कहा तब उन्हें लगा कि उन्हें अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने को कहा जा रहा हो। तब वह नहीं जानती थी कि इस चुनौती से गुज़रकर न केवल 40 लाख टर्न-ओवर का कारोबार चलेगा बल्कि गरीब महिलाओं की जिंदगी सुधारने का अवसर भी मिलेगा।

2008 में जब उनकी बेटी डेनिस ने अपना एमबीए पूरा किया और खुद का कुछ अपना करने की ठानी। पर उन्हें यकीन नहीं था कि वह अकेले कुछ कर पाएंगी; तब उन्होंने अपनी माँ को नौकरी छोड़ने के लिए जोर दिया। यह शेरिल को मूर्खतापूर्ण निर्णय लग रहा था। शेरिल एक गवर्नमेंट स्कूल में सोलह सालों से नौकरी कर रही थीं। उनके कन्धों पर बहुत सारी जिम्मेदारियों का बोझ था। अपनी कम तनख्वाह में उन्हें अपने माता-पिता, इन-लॉज़ और दो बच्चों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती थी। शेरिल जोखिम उठाने में कभी पीछे नहीं होती लेकिन जोखिम उठाने की क्षमता उम्र के साथ कुछ कम हो गई थी।

लेकिन डेनिश जानती थी कि सुनहरा भविष्य उनके लिए प्रतीक्षा कर रहा है, वह तो सिर्फ कोशिश करने में लगी थी।डेनिश का आइडिया था कि पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से डिस्पोजेबल नैपकिन और कपड़े बनाये जाएं। वह रात-रात जाग कर उनके डिजाईन पर काम करती थी। वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी। पर कुछ ऐसा चौकाने वाली घटना हुई कि स्थिति उनके पक्ष में  बदल गई।

डायबिटीज की वजह से लगभग दो दशकों से उनके यहाँ काम कर रही प्रेरणा नाम की महिला का एक पैर काटना पड़ा था। उसके दामाद ने उसे  बोझ समझ घर से निकाल दिया था। और वह शेरिल से मदद मांगने आयी थी। उस वाकिये ने शेरिल को हिला कर रख दिया था। और तब डेनिस की सलाह पर कुछ करने की संभावना का मूल्यांकन शेरिल ने शुरू कर दिया। और तब उन्होंने एक दिन डेनिश से कह दिया कि वह अपनी नौकरी छोड़कर उसके कहे बिज़नेस को अपनाने के लिए अब तैयार हैं।

अपनी माँ का फैसला आने के बाद डेनिश ने आगे बढ़ने का निश्चय किया और उन्हें विश्वास दिलाया कि वह प्रेरणा जैसे लोगों के भविष्य को सुधारने के लिए भी प्रयास करेगी। माँ-बेटी दोनों के पास शुरुआत करने के लिए केवल 500 रूपये ही थे। लेकिन उसके उत्साह, आत्मविश्वास और मेहनत में हर कमी को भर देने का जज़्बा था। उन्होंने उस पैसे से कुछ कपड़े ख़रीदे और एक सिलाई मशीन उन्होंने इन्सटॉलमेंट में ले लिया। उन्होंने चेन्नई के ब्यूटी-पार्लर्स में उपयोग होने वाले ब्रा, पैंटीज, नैपकिन्स के डिस्पोजेबल संस्करण के उत्पादन की शुरुआत कर दी।

शुरुआत में कोई भी उनके प्रॉडक्ट को देखता तक नहीं था क्योंकि पार्लर में वही पुराना चलन था जिसमें कपड़ों का उपयोग किया जाता था। परन्तु शेरिल और डेनिश ने अपना भरोसा नहीं खोया। हर पार्लर में घूम-घूम कर वे अपने प्रॉडक्ट का प्रचार करते ताकि कोई तो उनके प्रॉडक्ट को अपने पार्लर में जगह दे। अंत में अलवारपेट में स्थित एक पार्लर उनका सामान खरीदने के लिए तैयार हो गया और उन्हें सिर्फ 5000 रुपये ही मिले। वे बेहद खुश थे क्योंकि उनका मूलधन पहली बार में ही वापस आ चुका था।

दो महिलाएं बिना किसी के मदद के इंटरप्रेन्योर बन गई थी। भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट का उन्हें सहयोग मिला और उनकी मदद से उन्हें 2.5 लाख का लोन मिला। हौसले के संचार के लिए इतना धन उनकी कंपनी ड्रीम वीवर्स  के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। तब उन्होंने तीन और सिलाई मशीन खरीद ली। प्रेरणा का जीवन भी बदल रहा था और इस परिवर्तन को देख शेरिल और डेनिश ने यह तय किया कि वह और भी ऐसी महिलाओं को अपने यहाँ काम पर रखेंगी।

उनका दूसरा ग्राहक हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड था। इस जुड़ाव से उन्हें अपने काम के लिए बहुत सारा नैतिक बल मिला और बिज़नेस में लाभ भी। आज उनके बहुत सारे ग्राहक हैं और हर महीने लाखों का आर्डर उन्हें मिलता है। डिस्पोजेबल सामान के आज वे एक प्रमुख उत्पादक बन चुके हैं और इनके बनाये डिस्पोजेबल सामान  जैसे माउथ मास्क, डिस्पोजेबल टॉवेल्स, नैपकिन, पेपर बैग्स, हेड कैप्स, एप्रन, गाउन और लांड्री बैग का उपयोग स्पा में और ब्यूटी पार्लर में प्रचुर मात्रा में होता है।

लेकिन शेरिल को इसी बात से संतोष है कि उन्होंने लगभग दो दर्जन महिलाओं को आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा करने में कामयाबी हासिल की है। उनका बिज़नेस अब दुबई, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया तक फैल चुका है। माँ-बेटी की यह जोड़ी आज उन सभी के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहतीं हैं और अपना भाग्य-विधाता खुद बनना चाहते हैं। 

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