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अलविदा: 650 रुपये से 1500 करोड़ का साम्राज्य बनाने वाले धरमपाल गुलाटी का प्रेरक सफ़र

आज की कहानी है एक ऐसे शख़्स के बारे में जिन्होनें भारतीय उपभोक्ता बाजार में एक ऐसे ब्रांड को पेश किया जो भारत समेत दुनिया के कई देशों में ग्राहकों को अपना दीवाना बना लिया। सबसे ज्यादा बिकने वाले इस उत्पाद के सीईओ को शायद ही किसी ने किसी मैगजीन कवर पर देखा हो, लेकिन वह देश के लोगों के लिए आज एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। 

94 साल के इस वृद्ध ने न सिर्फ देश के खुदरा बाजार में क्रांति लाई बल्कि कंज्यूमर प्रॉडक्ट बनाने वाली कंपनियों में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले शख़्स भी बनें। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि महज़ 5वीं तक की पढ़ाई किये इस शख़्स की सैलरी सालाना 21 करोड़ रुपये है।

मसालों के शहंशाह महाशय धरमपाल गुलाटी आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा लिए धरमपाल सिर्फ 5वीं तक पढ़े हैं। 1947 में देश विभाजन के समय इनका परिवार पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर दिल्ली आ गया और दिल्ली कैंट क्षेत्र में पूरे परिवार के साथ एक शरणार्थी कैंप में रहे।

650 रुपये में उन्होंने एक तांगा खरीदकर अपनी आजीविका शुरू की। कुछ दिनों बाद उन्होंने तांगा बेचकर अपना पुश्तैनी मसालों का धँधा शुरू किया। दरअसल 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में इनके पिता चुन्नी लाल ने मसाले की एक छोटी सी दुकान खोली थी। उस वक़्त उन्होंने नहीं सोचा था कि उनका बेटा इस छोटी सी दुकान को 1,500 करोड़ रुपए के साम्राज्य में तब्दील कर देगा।

MDH अर्थात् महाशिया दी हट्टी कैसे इतनी बड़ी कंपनी बनी

धरमपाल ने दिल्ली के करोल बाग में एक छोटी सी दुकान से अपना पुश्तैनी मसालों का धँधा शुरू किया। अपने मसालों की गुणवत्ता पर खासा जोर देते हुए शुरुआत में उन्होंने मसाले की पिसाई से पैकेजिंग तक का काम अपने घर में करते थे। कम कीमत पर शुद्ध देशी मसाले मुहैया करा धरमपाल ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। धीरे-धीरे बाज़ार में उनकी डिमांड बढ़ने लगी। फिर धरमपाल ने छोटे-छोटे वितरकों के साथ साझेदारी करते हुए अन्य शहरों में भी अपनी पैठ जमाना शुरू कर दिए।

शुरूआती सफलता के बाद उन्होंने अन्य शहरों में खुद की फैक्ट्रियां खोलने शुरू कर दिए और आज भारत में एमडीएच की 15 फैक्ट्रियां चल रही है जो करीब 1,000 डीलरों को मसाले सप्लाई करती हैं। इतना ही नहीं एमडीएच के दुबई और लंदन में भी ऑफिसेज हैं। आज कंपनी लगभग 100 देशों से एक्सपोर्ट करती है। धरमपाल की उम्र आज 94 साल है फिर भी वो फैक्ट्री, बाजार और डीलर्स का नियमित दौरा करते हैं। इस साल एमडीएच ने रेवेन्यू में 15% की बढ़ोत्तरी के साथ 924 करोड़ का व्यापार किया, जिसमें कंपनी ने शुद्ध रूप से 213 करोड़ की कमाई की।

गरीबों के कल्याण के लिए महाशय धरमपाल अपनी सैलरी का 90 फीसदी दान कर देते हैं

एमडीएच के 60 से ज्यादा उत्पाद हैं। इसके सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पाद देसी मिर्च, चाट मसाला और चना मसाला हैं जिनके करीब-करीब हर महीने करोड़ों पैकेट बिक जाते हैं।

धरमपाल हमेशा जरुरामंदों की सेवा में हाज़िर रहते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने कई स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों का निर्माण करवाया, जहाँ गरीबों और जरुरतमंदों को मुफ्त सेवाएं प्रदान की जाती है। इतना ही नहीं वो अपनी सैलरी का 90 फीसदी चैरिटी में दान कर देते हैं।

एमडीएच शुरुआत से ही प्रतिद्ंद्वियों को अपनी कीमतों से मात दे रही है। बाकी कंपनियां इनकी प्राइसिंग स्ट्रैटिजी को अमल में लाने की कोशिश करती है। चूंकि एमडीएच कीमतें कम रखती है इससे इन्हें कुल मिलाकर फायदा ज्यादा हो जाता है।

धरमपाल कहतें हैं कि “मेरे काम करने के पीछे यह प्रेरणा रहती है कि उपभोक्ताओं को कम से कम दाम में अच्छी गुणवत्ता का उत्पाद उपलब्ध कराया जाए।”

महाशय धरमपाल की पहचान एक ऐसे मेहनती उद्यमी के तौर पर है जो उम्र के ऐसे पड़ाव पर भी फैक्ट्री, बाजार और डीलर्स का नियमित दौरा करते हैं। जब तक उनको इस बात की तसल्ली नहीं मिल जाती है कि कंपनी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, उन्हें चैन नहीं मिलती। और यही वजह है इनकी सफलता के पीछे।

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